सुनीति की कथा – सुनीति और सुरूचि की कहानी – भक्त ध्रुव की कथा Naeem Ahmad, April 12, 2020March 23, 2024 राजा उत्तानपाद के दो रानियां थी। बड़ी रानी सुनीति एवं छोटी रानी सुरूचि। सुनीति पटरानी थी किंतु राजा उत्तानपाद का दूसरा विवाह सुरूचि के सौंदर्य पर मुग्ध होकर किया था। सुरूचि जितनी सुंदर थी उतनी ही चतुर और कपटी भी थी। उसने अपने रूप के मोह जाल से राजा उत्तानपाद को शीघ्र ही अपने वश में कर लिया। सुनीति राजमहिर्षी थी, यज्ञादि कार्यों एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में राजा के साथ उसकी प्रधान रानी सुनीति ही भाग लेती थी। यह बात छोटी रानी को बहुत अखरती थी। मन ही मन वह बड़ी रानी से द्वेष करती थी। उलटी सीधी मनगढ़ंत बात बनाकर राजा उत्तानपाद को उसके विरुद्ध कर दिया। राजा उत्तानपाद जिसे सुरूचि के सौंदर्य ने अंधा बना दिया था। विवेक रहित होकर राजा उत्तानपाद ने सुरूचि की हर बात को मानना प्रारंभ कर दिया। अंत में एक दिन अपने मान का ढोंग रच सुनीति को जो अत्यंत गुणवान थी राजमहलों से निर्वासित करा दिया। काम का आकर्षण गुण की अपेक्षा रूप की और अधिक होता है। राजा उत्तानपाद ने अपनी बड़ी रानी का परित्याग कर दिया।सुनीति और सुरूचि की कहानी – ध्रुव की कहानीपति परित्यक्ता रानी गोद में अपना नन्हा शिशु लिए राजधानी के समीप स्थित महर्षि के आश्रम में निवास करने लगी। राजवैभव का परित्याग उस गुणवान नारी ने राजमहलों में ही कर दिया था। अब वह एक तपस्विनी की भांति अपना जीवन व्यतीत करने लगी। पति से परित्यक्त रानी की आशा का केंद्र अब उसकी गोद का बालक ध्रुव था। ऋषि कुमारों के साथ महाऋषियों के सानिध्य में बालक ध्रुव का पालन हो रहा था। सरल सात्विक सद्गुणों की प्रतिमूर्ति रानी बालक ध्रुव को देख देख कर अपने जीवन के शेष दिन व्यतीत कर रही थी। वहीं उसका एकमात्र सहारा था। और यही सुनीति और सरूचि की कहानी का मुख्य सार भी है। अटल ध्रुव की कहानी बड़ी ही रोचक है।देवहूति महर्षि कर्दम की पत्नी, व महाराज मनु की पुत्री – देवहूति की कथा।उधर सुरूचि यह भलिभांति जानती थी कि मैने कपट पूर्वक सुनीती को पति से अलग तो करवा दिया, परंतु एक समस्या अभी भी उसके रास्ते का कांटा है और वह है ध्रुव। ध्रुव सुनीति का पुत्र था। और वह सुरूचि के पुत्र उत्तम से बड़ा था। नियमानुसार ध्रुव ही राज्य का उत्तराधिकारी था। अतः सुरूचि अब इसी प्रयास में लगी हुई थी कि जितना हो सके ध्रुव राजा उत्तानपाद से दूर रहें। जिससे उनका स्नेह सिर्फ उत्तम पर ही रहे और वे उसे ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करें।शकुंतला दुष्यंत की प्रेम कथा – शकुंतला दुष्यंत की अमर प्रेम कहानीध्रुव अभी पांच वर्ष का ही था कि एक दिन अपनी माता से आज्ञा लेकर पिता के दर्शन हेतू राजधानी में गया। ध्रुव के साथ आश्रमवासी अन्य ऋषिकुमार भी थे। राजधानी में पहुंच कर इन ऋषिकुमारों ने जब राजभवन में प्रवेश किया तो राजा उत्तानपाद ने उन्हें प्रणाम कर उनका अभिवादन किया। ध्रुव ने अपने पिता के चरणों पर जब मस्तक रखा तो राजा उत्तानपाद अपने इस सुंदर व तेजस्वी बालक को गोद में लेने का मोह संवरण न कर सके। बालक ध्रुव को राजा की गोदी में बैठा देखकर उसकी विमाता सुरूचि के कलेजे पर सांप लौटने लगे। उसने आते ही तुरंत महाराज को कहा– महाराज! आपने अभागिन के इस पुत्र को गोद में क्यों बैठाया है। यह आपको शोभा नहीं देता। यह कहती हुई सुरूचि राजा के समीप गई और बालक ध्रुव का तिरस्कार करती हुई उसे अपने पिता की गोद से नीचे उतार दिया। इतना ही नहीं सुरूचि उसका अपमान करते हुए आगे यह कहने से भी नहीं चूकी। कि तुमने अभागी माता के गर्भ से जन्म लिया है। यदि तुम्हें महाराज की गोद अथवा सिंहासन पर बैठना है तो मेरी कोख से जन्म लेना पडेगा। राजा उत्तानपाद सहसा कुछ न बोल सके। ऋषिकुमार यह दृश्य देख स्तब्ध रह गए। विमाता के व्यंग्य बाणों के आहत ध्रुव के नेत्रों से क्रोधाग्नि प्रकट हो रही थी। उसका शरीर कांपने लगा। उसने एक बार अपने पिता की ओर देखा, वे चुपचाप बैठे थे। कठोर नेत्रों से उसने अपनी विमाता को देखा और तीव्र गति से वहां से प्रस्थान कर दिया।सुनीति और सुरूचि तथा ध्रुव की कथाराजधानी से बालक ध्रुव सीधा अपनी अपनी माता के पास आश्रम में पहुंचा। माता ने अपने पुत्र की मनोव्यथा जानने हेतू पुचकारते हुए कहा — कहो तुम्हें किसने मारा है। किसने तुम्हारा अपमान किया है। मां की गोदी में मुंह छिपाएँ बालक ध्रुव फूट फूट कर रोने लगा और बड़ी कठिनता से रोते रोते ही उसने सारा वृत्तांत अपनी माता को सुनाया। माता ने भी अपने लाल को छाती से लगा लिया और उसकी पीठ सहलाते हुए उसे सांत्वना प्रदान की।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं बालक ध्रुव को विमाता की बात बहुत कचोट रही थी। वह अब भी सिबुक रहा था और पिता की गोद से जिस प्रकार उसे अपमानित कर उतारा गया था, उससे वह बड़ा खिन्न था। उसने अपनी माता को फिर कहा– क्या किसी पुत्र को अपने पिता की गोद में बैठने का अधिकार नहीं है? और फिर मुझे अभागिन का पुत्र कहकर विमाता ने मेरा ही नहीं मां तुम्हारा भी तो अपमान किया है। मै इसे कभी सहन नहीं कर सकता।शिवपुर का मेला और तारकेश्वर का मेला मिर्जापुर उत्तर प्रदेशमाता के धैर्य का बांध टूट गया — सचमुच बैटा में अभागिनी हूँ, मै अभागिनी नहीं होती तो अपने ही स्वामी द्वारा मेरा परित्याग नहीं होता। पति द्वारा परित्यक्त पत्नी संसार में अभागिनी ही मानी जाती है। ऐसी अभागी माता के कोख से जन्म लेना सचमुच तेरे अभाग्य का ही सूचक है। यह कहते कहते माता के नेत्रों से आंसुओं की धार बह निकली। अश्रुपूर्ण नेत्रों से अपने प्राणों से प्रिय पुत्र को समझाते हुए माता ने कहा– बेटा तुम्हारी विमाता ने जो कहा है वह सत्य है। उसी मै तुम्हारा कल्याण है। भगवान की तपस्या कर तुम संसार में सबसे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सकते हो, तुम्हारे पिता की गोद में तुम्हारे लिए चाहे कोई स्थान न हो किंतु परमपिता परमेश्वर की गोद में बैठकर तुम निश्चित हो सकते हो वहां से तुम्हारी विमाता तुम्हें कभी नहीं उतार सकती।तारामती की कथा – तारामती की कहानी, राजा हरिश्चंद्र की कहानीमां की यह बात सुनकर ध्रुव का सारा दुख दूर हो गया। उसने जगत के पिता की गोद में बैठने की ठान ली। वह विमाता के पुत्र उत्तम से भी उच्च स्थान प्राप्त करने का इच्छुक हो उठा, और उसने मां से यह जान लिया कि भगवान को तपस्या द्वारा प्रसन्न कर मन चाहा वरदान प्राप्त किया जा सकता है। उसने उसी समय वन जाने का निश्चय कर लिया। गोद से उतरकर बालक ध्रुव ने अपनी मां के चरणों पर मस्तक रखा, पांच वर्ष का नन्हा बालक, माता की आंखों का तारा उसके जीवन का एकमात्र सहारा, भगवद् भक्ति हेतू वन में जाने के लिए मां से आशीर्वाद मांग रहा था।मीराबाई का जीवन परिचय और कहानीश्रेष्ठ कार्य हेतू सुनीति ने अपने पुत्र में अत्यधिक उत्कंठा और जिज्ञासा देख रोकना उचित न समझा। उसने अपने पुत्र को बांहों में भर गोदी में लिया, स्नेह से पुत्र का मुंह चूमा, भरे नेत्रों और गदगद कंठ से वन को विदा होते ध्रुव को आशीर्वाद देते हुए माता ने कहा– जाओ पुत्र उस जगत पिता को प्रसन्न करो, प्रभु तुम्हारा मंगल करे।टेसू और झेंझी की कहानी – टेसू और झेंझी का इतिहासधन्य है वह ध्रुव जननी सुनीति जिसने अपने जीवन भर की खुशियों को तिलांजलि दे, पुत्र की मंगल कामना हेतू जो त्याग किया वह बेमिसाल है। उसी माता के पुत्र इसी अटल ध्रुव ने आगे चलकर सर्वेश्वर भगवान को प्रसन्न कर नित्यलोक की प्राप्ति का वरदान प्राप्त किया। पांच वर्ष का वह नन्हा सा बालक ईश्वर भक्ति की ओर प्रवत्त होकर आगे चलकर ध्रुव पद प्राप्त करके ध्रुव लोक का अधिपति बना। जिसकी समस्त गृह, नक्षत्र, और सम्मपूर्ण तारा वर्ग प्रदक्षिणा करता है। उसकी इस उपलब्धि मे उसकी जननी की महती भूमिका रही। यह सुनीती का ही परिणाम था कि ध्रुव को ध्रुव बनाया। स्त्री पुरूष से उतनी ही श्रेष्ठ है, जितना प्रकाश अंधेरे से। मनुष्य के लिए क्षमा और त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श है। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है। पुरूष धर्म और अध्यात्म और ऋषियों का आश्रय लेकर उस लक्ष्य पर पहुंचने के लिए सदियों से जोर मार रहा है। पर सफल नहीं हो सका। मै कहता हूँ उसका सारा अध्यात्म और योग एक तरफ और नारियों का त्याग एक तरफ। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=”9109″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... प्राचीन काल की नारी प्राचीन देवियां