मणिकर्ण मंदिर – मणिकर्ण की यात्रा – गुरूद्वारा मणिकर्ण साहिब Naeem Ahmad, July 17, 2018April 6, 2024 मणिकर्ण, यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हिमालय के चरणो मे हारिन्द्र नामक सुरम्य पर्वत श्रृंखला (कुल्लू घाटी) मे पर्वतो और व्यास नदियों की धाराओं के बीच है। इसके पश्चिम में शीतल एवं गर्म जल के सरोवर और पूर्व मे ब्रह्मगंगा है। मणिकर्ण हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी मे स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ है। यह तीर्थ स्थान जितना हिन्दुओं के लिए महत्व रखता है उतना ही सिखो के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि यहां सिखो का प्रमुख गुरूद्वारा भी है। अपनी इस पोस्ट मे हम इसी प्रसिद्ध तीर्थ मणिकर्ण की यात्रा करेगें। मणिकर्ण का धार्मिक महत्व मणिकर्ण पर्वत का दूसरा नाम हरेन्द्र गिरि है। मणिकर्ण का महात्मय ब्रह्मपुराण मे भी आता है। कहते है कि भगवान शिव के कान की मणि गिर जाने से इसका नाम मणिकर्ण पडा।पुराणो के अनुसार शिव-पार्वती ने यहां के शीतल व उष्ण सरोवर मे जल क्रिडा की। जल-क्रिड़ा के समय पार्वती के कर्ण फूल की मणि जल में गिर गई। भगवान शिव ने अपने गणो को मणि ढूंढने का आदेश दिया। परंतु वे मणि को न ढूंढ पाएं। तब शिव ने क्रुद्ध होकर अपना तीसरा नेत्र खोला तो शेषनाग भयभीत हो गया। उसने तत्काल इस स्थान पर उध्र्व धारा मे से मणि प्राप्त करा दी। इस कारण इस स्थान का नाम मणिकर्ण पड गया। परंतु कुछ कथाओं मे इस मणि को पार्वती के कर्णफूल की न बताकर भगवान शिव के कान की मणि बताया गया है। मणिकर्ण के सुंदर दृश्य मणिकर्ण दर्शनप्राकृतिक संपदा से भरपूर इस क्षेत्र मे होकर मणिकर्ण गांव आता है। इस तीर्थ तक आते आते यात्रियों को ध्यान ही नही रहता.कि वे इतना लंबा रास्ता पार कर आए है। क्योंकि यहाँ की प्राकृतिक छटा देखकर यात्रियों का मन खिल उठता है। और वह इन मनोरम दृश्यों का आनंद लेते हुए जाने कब पहुंच जाता है पता ही नही चलता। मणिकर्ण सरोवरमणिकर्ण सरोवर का जल इतना गर्म है कि शरीर के किसी अंग पर यदि उसकी एक बूंद भी पड जाए तो उस पर फफोला पडकर मांस उधड जाता है।यहां पहुंचने पर यात्री गर्म जल कज कुंडो मे स्नान करते है। यात्रियों के स्नान के लिए यहां अलग अलग कुंड बनाए गए है। तथा उनमे मुख्य कुंड से पानी लेकर उसमे शीतल जल मिलाकर यात्रियों के नहाने योग्य बनाया गया है।नाड़ा साहिब गुरूद्वारा पंचकूला हरियाणा चंडीगढ़यहां स्नान के बाद तीर्थ यात्रियों को सुगंधित गर्म चाय पिलायी जाती है। तथा यात्रियों के भोजन की भी विशेष व्यवस्था रहती है। यह सब व्यवस्था तीर्थ समिति की ओर से निशुल्क उपलब्ध रहती है।रात्रि में यात्रियों के ठहरने की समुचित व्यवस्था, इसके अलावा चिकित्सक सुविधाएं भी कमेटी की ओर से यहाँ उपलब्ध कराई जाती है।मणिकर्ण को अग्नि तीर्थ भी कहा जाता है। मठ मे अग्नि सदा रहती है। गर्म पानी के सरोवरों मे हर समय पानी जमीन से अपने आप ऊपर निकलता और उबलता रहता है। गर्म पानी की भाप बादलो के रूप मे ऊपर उठती रहती है। इससे ऐसा लगता है, जैसे चारो ओर कोहरा छाया हुआ है।यहां गर्म जल के अनेक स्त्रोत है। जमीन भी इतनी ही गर्म रहती है, कि बिना चप्पल पहने नही चला जाता। गर्म जल के स्त्रोतों मे ही यहां भोजन बनाया जाता है। यात्रियों का भोजन भी इन्हीं में तैयार होता है। यात्री यहां कपडे मे चावल बांधकर कुंड के जल मे लटका देते है और कुछ ही समय मे चावल बनकर तैयार हो जाते है।नानक झिरा बीदर साहिब – गुरूद्वारा नानक झिरा साहिब का इतिहासलोगो का मानना है कि इस जल मे स्नान करने से चर्म, व कुष्ठ रोगो को भी लाभ मिलता है।जर्मन वैज्ञानिकों ने भी इन गर्म जल स्त्रोतों को विचित्र बताया है। क्योंकि गंधक के चश्मे मे भोजन नही पक सकता। अतः यहां के जल स्त्रोतों मे रेडियम हो सकता है। गर्म जल के स्त्रोतों के अलावा यहां अत्यंत शीतल जल के सरोवर भी है।मंदिरइस पावन तीर्थ के बीच पार्वती नदी के तट पर भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है।इसके अलावा यहां गांव मे मनोकामना देवी का मंदिर भी है। यहां यात्री अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।रूद्रनागमणिकर्ण के निकट ही यह तीर्थ है। यहां से जल नागफन की तरह बहता है। यहां एक अन्य स्थान ब्रह्मगंगा है, जहां ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी। हमारे यह लेख भी जरूर पढे:–कूल्लू मनाली के दर्शनीय स्थलधर्मशाला के दर्शनीय स्थलपठानकोट के दर्शनीय स्थलडलहौजी के दर्शनीय स्थलज्वाला देवी मंदिरचामुण्डा देवी कांगडामनसा देवी पंचकूला मणिकर्ण के सुंदर दृश्य गुरूद्वारा मणिकर्ण साहिबजैसा कि हमने बताया कि यह स्थान सिखो के तीर्थ स्थल के रूप मे भी जाना जाता है। सिखो की मान्यता के अनुसार:–हिमाचल के मणिकर्ण का यह गुरुद्वारा बहुत ही प्रख्यात स्थल है। ज्ञानी ज्ञान सिंह लिखित “त्वरीक गुरु खालसा” में यह वर्णन है कि मणिकर्ण के कल्याण के लिए गुरु नानक देव अपने 5 चेलों संग यहाँ आये थे।गुरु नानक ने अपने एक चेले “भाई मर्दाना” को लंगर बनाने के लिए कुछ दाल और आटा मांग कर लाने के लिए कहा। फिर गुरु नानक ने भाई मर्दाने को जहाँ वो बैठे थे वहां से कोई भी पत्थर उठाने के लिए कहा। जब उन्होंने पत्थर उठाया तो वही से गर्म पानी का स्रोत बहना शुरू हो गया। यह स्रोत अब भी कायम है और इसके गर्म पानी का इस्तमाल लंगर बनाने में होता है। कई श्रद्धालू इस पानी को पीते और इसमें डुबकी लगाते हैं। कहते है के यहाँ डुबकी लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। कैसे पहुंचेमणिकर्ण पहुंचने के लिए पठानकोट से जोगिंदर, मंडी, और भूअंतर होते हुए जाना पडता है। पठानकोट से जोगिंद्रनगर तक ट्रेन जाती है। उससे आगे बस भूअंतर तक छोड देती है। यहां से व्यास गंगा का पुल पार करके साढे तेरह मील चलने पर जरीपडाव आता है। उससे आगे लगभग सात मील चढाई पर पार्वती गंगा के तट पर मणिकर्ण तीर्थ सरोवर आता है। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=’16975′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email 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