त्रयम्बकेश्वर महादेव – त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग – त्रियम्बकेश्वर टेम्पल नासिक Naeem Ahmad, January 15, 2018February 25, 2023 त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। नासिक से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर त्रयम्बकेश्वर बस्ती है। इसी बस्ती में पहाड की तलहटी में गोदावरी नदी के तट पर त्रयम्बकेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में स्थित शिव लिंग की गणना भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में होती है। इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के नाम पर ही इस बस्ती का नाम भी त्रयम्बकेश्वर पडा। यहा के निकटवर्ती ब्रह्मागिरी नामक पर्वत से पूत सलिला गोदावरी निकलती है। जो मान्यता गंगा जी की उत्तर भारत में है। वैसी ही मान्यता गोदावरी की दक्षिण भारत में है। जैसे गंगा जी को धरती पर लाने का श्रेय भगीरथ जी को जाता है। वैसे ही गोदावरी को धरती पर लाने का श्रेय ऋषि श्रेष्ठ गौतम जी को जाता है। जिन्होनें घोर तपस्या कर गोदावरी को जनकल्याण के लिए धरती पर जल धारा के रूप में प्रवाह कराया।प्रिय पाठको अपने इस लेख हम भगवान शिव के उन पवित्र दिव्य 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के इस पवित्र पावन स्नान की यात्रा करेगें। और उसके बारे में विस्तार से जानेगें। अपनी द्वादश ज्योतिर्लिगं यात्रा के अंतर्गत हमने अपने पिछले कुछ लेखो में भगवान शिव द्वादश ज्योतिर्लिगो में से कुछ का भ्रमण किया था जिनकी सूची नीचे दी जा रही है। अन्य ज्योतिर्लिंगो के बारे में भी यदि आप जानना चाहते है। तो नीचे सूची में किसी पर भी क्लिक करके आप उनके बारे में भी हमारे लेख पढ सकते है।अन्य ज्योतिर्लिंगो की सूची:–सोमनाथ ज्योतिर्लिंगकेदारेश्वर ज्योतिर्लिंगमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनभीमशंकर ज्योतिर्लिंगवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगनागेश्वर ज्योतिर्लिंगघुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथामहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगकाशी विश्वनाथ धाम Contents1 त्रयम्बकेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग का महत्व1.1 त्रयम्बकेश्वर महादेव की कहानी – त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा1.1.1 त्रयम्बकेश्वर मंदिर का निर्माण1.1.1.1 त्रयंबकेश्वर दर्शन1.1.2 त्रयम्बकेश्वर महादेव के तीन पर्वत1.2 Share this:1.3 Like this:त्रयम्बकेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग का महत्व त्रयम्बकेश्वर नामक इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन से इस लोक में सभी इच्छाओ को पूरा करने वाला तथा परलोक में भी उत्तम मोक्षं प्रदान करने वाला है। बृहस्पति हर बारह वर्ष में एक बार सिंह राशि पर पहुंचते है। इस अवसर पर यहा कुंभ का मेला लगता है। कहा जाता है कि कुंभ के समय सारे तीर्थ यहा उपस्थित होते है। इसलिए उस समय यहा स्नान करने से समस्त तीर्थ यात्राओ का पुण्य फल मिलता है। सभी तीर्थ जब तक गौमती के किनारे रहते है। अपने स्थल पर उनका महत्व नही होता है। इसलिए गोदावरी कुंभ के समय बाकी सभी तीर्थ वर्जित माने जाते है। त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर के सुंदर दृश्य त्रयम्बकेश्वर महादेव की कहानी – त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा त्रयम्केश्वर महादेव की कहानी के अनुसार एक बार कुछ ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गो हत्या का दोष लगाया। तथा उन्हें प्रायश्चित करने के लिए गंगाजी को लाने को कहा। तब गौतम ऋषि ने एक करोड शिव लिंगो की पूजा की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी के साथ प्रकट हुए। ऋषि गौतम ने उनसे गंगा की मांग की। जब भगवान शिव ने गंगा को वहा रहने के लिए कहा तो गंगा जी इसके लिए तैयार नही हुई। गंगा जी ने कहा– हे नाथ! में आपने स्वामी के बिना यहा अकेली कैसे रहूंगी। यदि आप यहा सदा के लिए प्रतिष्ठित हो जाएंगें, तो मै यहा रहना स्वीकार करूगीं।तब भगवान शंकर त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए यहा प्रतिष्ठित हुए। और गंगा मैया गौमती के रूप में यहा उतरी। उसी समय सभी देवी-देवता, तीर्थ, सरोवर, नदियां और विष्णुजी वहा उपस्थित हुए। तथा उन्होने श्री गौमती जी रूपी गंगा मैय्या का अभिषेक किया। उसी समय से जब बृहस्पति सिंह राशि पर रहते है। सभी तीर्थ गौमती या गोदावरी के किनारे उपस्थित होते है। त्रयम्बकेश्वर मंदिर का निर्माण वर्तमान त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण बालाजी बाजी राव पेशवा (नाना साहेब पेशवा) ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण 1755 में शुरू हुआ था तथा 1786 में पूर्ण हुआ था। जिसके निर्माण में उस समय के लगभग 16 लाख रूपये का खर्च आया था। इस भव्य मंदिर का निर्माण काले पत्थरो से किया गया है। जिसकी कलाकृति और वास्तुकला बहुत ही आकर्षक और सुंदर है। त्रयंबकेश्वर दर्शन त्र्यंबकेश्वर मंदिरयह यहा का मुख्य मंदिर है। त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर के पूर्व द्वार से मंदिर में प्रवेश करके सिद्धिविनायक और नंदिकेश्वर के दर्शन करते हूए मंदिर के गर्भगृह में भीतर जाने पर त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते है। त्रयम्बकेश्वर में केवल अर्धा दिखता है। ध्यान से देखने पर वहा छोटे छोटे तीन शिवलिंग दिखाई देते है। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतिक माने गए है। प्रात:काल पूजि के पश्चात यहा चांदी का पंचमुख चढा दिया जाता है। और भक्तो को उसी के दर्शन होते है। मंदिर के पिछे परिक्रमा मार्ग में अमृतकुंड नामक एक कुंड है। कुशावर्तत्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर से थोडी दूरी पर यह सरोवर है। इसमें नीचे से गोदावरी का जल आता है। सरोवर में स्नान नही किया जाता। उसका जल पीकर बाहर स्नान करते है। यहा स्नान करने के बाद त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिग के दर्शन करने का महत्व माना जाता है। कुछ लोग कुशावर्त की परिक्रमा भी करते है। कुशावर्त पर स्नान करने के बाद त्रयम्बकेश्वर महादेव के दर्शन को जाते समय मार्ग में आप नीलगंगा संगम पर संगमेश्वर, कनकेश्वर, कपोतेश्वर, विसंध्यादेवी तथा त्रिभुवनेश्वर के दर्शन करते हुए भी जा सकते है या फिर त्रयम्बकेश्वर महादेव के दर्शन करने के बाद भी इनके दर्शन कर सकते है। त्र्यंबकेश्वर के अन्य मंदिरकुशावर्त सरोवर के पास ही गंगा मंदिर और केदारेश्वर मंदिर है। उसके पास ही श्रीकृष्ण मंदिर है। बस्ती में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर, श्री राम मंदिर तथा पशुराम मंदिर है। इंद्रालय के पास इंद्रेश्वर मंदिर, त्रयम्केश्वर के पास गायत्री मंदिर और त्रिसंध्येश्वर मंदिर, कांचनतीर्थ के पास कांचनेश्वर और ज्वरेश्वर मंदिर, कुशाव्रत के पिछे बल्लालेश्वर मंदिर, गौतमालय के पास गौतमेश्वर, रामेश्वर मंदिर, महादेवी के पास मुकुंदेश्वर मंदिर इत्यादि कई छोटे बडे मंदिर यहा स्थित जिनके दर्शन भी आप कर सकते है। श्री निवृत्तिनाथ की समाधीमहाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत गुरू श्री निवृत्तिनाथ की समाधि बस्ती के एक किनारे पर्वत के नीचे है। गौमती द्वार जाते समय सीढियो के प्रारंभ स्थान से कुछ दूर दाहिने जाने पर यह स्थान मिलता है। मंदिर के आसपास धर्मशालाएं है। वारकरी समुदाय का यह प्रमुख तीर्थ है। पौषवदी द्वितीय को यहा मेला लगता है।त्रयम्बकेश्वर महादेव के तीन पर्वत त्रयम्बकेश्वर के समीप तीन पर्वत पवित्र माने जाते है। इनके बारे में भी विस्तार से जान लेते है:–ब्रह्मागिरि पर्वतइस पर्वत पर त्रयम्केश्वर का किला है। यह किला आज जीर्ण शीर्ण दशा में है। पर्वत पर जाने के लिए 500 सीढिया है। यहा एक जल पूरित कुंड है। और उसके पास मंदिर है। पास ही गोदावरी का मूल उद्गम स्थल है। पास ही भगवान शंकर के जटा फटकारने के चिन्ह है। ब्रह्मागिरि को शिव स्वरूप माना जाता है। कहते है कि ब्रह्मा के शाप से भगवान शंकर यहा पर्वत रूप में स्थित है। इस पर्वत के पांच शिखर है। सधोजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरूष, और ईशान। नीलगिरि पर्वत इस पर्वत पर 250 सीढीयां चढकर जाना पडता है। यह ब्रह्मागिरि पर्वत की वाम गोद में है। यहा नीलांबिका देवी का मंदिर है। कुछ लोग इन्हें परशुरामजी की माता रेणुका देवी भी कहते है। यहा नवरात्रो में मे ला लगता है। पास ही गुरू दत्तात्रेय का मंदिर भी है। उसी के पास मे नीलकंठेश्वर मंदिर भी है। इसे सिद्ध तीर्थ कहा जाता है। कौलगिरि पर्वत इस पर्वत पर 750 सीढीयां चढकर जाना पडता है। इसे कौलगिरी भी कहते है। यहा ऊपर गोदावरी का मंदिर है। मूर्ति के चरणो के समीप धीरे धीरे बूंद बूंद जल निकलता है। यह जल समीप के एक कुंड में एकत्र होता है। पंचतीर्थ में यह एक तीर्थ है। यहा मंदिर से थोडी आगे अनोपानशिला है। यह शिला गोरखनाथ जी के नाथ संप्रदाय में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इस पर अनेक सिद्धो ने तपस्या की है। यह गोरखनाथ संप्रदाय की तीर्थ भूमि है। Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल तीर्थ स्थलद्वादश ज्योतिर्लिंगभारत के धार्मिक स्थलभारत के प्रमुख मंदिरभारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरभारत में शिव के प्रधान मंदिरमहाराष्ट्र के दर्शनीय स्थलमहाराष्ट्र के मंदिरमहाराष्ट्र पर्यटन