केशवरायपाटन का मंदिर – केशवरायपाटन मंदिर का इतिहास Naeem Ahmad, October 31, 2019March 18, 2024 केशवरायपाटन अनादि निधन सनातन जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर भगवान मुनीसुव्रत नाथ जी के प्रसिद्ध जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र और भागवान केशवराय जी महाराज, तथा भगवान विष्णु के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है जो राजस्थान के बूंदी जिले में चम्बल नदी के तट पर स्थित है। राजस्थान से प्रमुख शहर कोटा से केशवरायपाटन की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। केशवरायपाटन शहर नहीं है लेकिन देहात भी नहीं है लेकिन देहात भी नहीं कहा जा सकता। केशवरायपाटन तहसील है जो बूंदी जिले का कस्बा है। कार्तिक पूर्णिमा पर केशवरायपाटन में विशाल मेला लगता है। इस अवसर पर देश के कोने कोने से आए हजारों श्रृदालु जन श्री केशवराय जी, चारभुजा जी एवं जम्बुकेश्वर महादेव के दर्शन व पूजा अर्चना करते है। केशवरायपाटन टेम्पल हिस्ट्री इन हिन्दीकेशवरायपाटन के इतिहास पर नजर डाले तो आभास होता है कि किसी समय यह बडी भव्य नगरी रही होगी। क्योंकि वायु पुराण के अनुसार चौरासी कोस के जम्बू भाग के बीच इसका स्थान-विस्तार पांच कोस माना गया है। परशुराम जमदग्नि संवाद के बीच इस प्रसंग पर पर्याप्त चर्चा हुई है। यथा हरिवंश पुराण में भी जम्बुकाराय और केशवरायपाटन के पुण्य महात्मय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। जैसा की हमने ऊपर जिक्र किया कि किसी समय यह भव्य नगरी रही होगी। यह इससे सिद्ध होता है कि केशवराय पाटन में और उसके आसपास कितने ही देवालय खंडहर हुए पड़े है। और कितने ही समय के साथ भूमि में धंस गए है। और न जाने कितने ही वर्तमान विकास की भेंट चढ़ गए है। और न जाने कितने ही जनसकुल मार्गों से दूर वीरानियत की खामोशी में अपने अतीत की स्मृतियां संजोये पड़े है।मुकाम मंदिर राजस्थान – मुक्ति धाम मुकाम का इतिहासकेशवरायपाटन की परिधि में मुख्य देवालयों में श्री केशवरायपाटन का मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है। चैत्र की पूर्णिमा पर इसका विशाल प्रांगण श्रृद्धालुओं के पदचाप से भर उठता है। केशवरायपाटन मंदिर में राव राजा रघुवीर सिंह (बूंदी) का विक्रमी सन् 1959 में लगवाया गया एक शिलालेख है। जिसके अनुसार केशवरायपाटन मंदिर का निर्माण बूंदी के राव राजा श्री शत्रुशल्य जी ने सन् 1698 विक्रमी में करवाकर किसी जीर्ण मंदिर से उठाई गई दो प्रतिमाएं इसमें स्थापित की थी। एक प्रतिमा श्री केशवरायजी की जो श्वेत संगमरमर की है और मुख्य मंदिर में है, तथा दूसरी श्री चारभुजा जी की कृष्ण मूर्ति जो परिक्रमा के मंदिर में है।श्री महावीरजी टेम्पल राजस्थान – महावीरजी का इतिहासकेशवरायपाटन मंदिर विष्णु तीर्थ से ठीक ऊपर नदी तट से दौ सौ फीट की ऊचाई पर है। जिसमें अंदर बाहर सर्वत्र विविध प्रकार की पशु आकृतियां, मनुष्य आकृतियां, नृत्य मुद्राएं और भगवान श्री कृष्ण संबंधी भागवत कथाएं मूर्ति रूप में उत्कीर्ण है। मंदिर के अंदर की प्रतिमाओं पर चटकीले रंग है, जबकि बाहरी दीवारों की प्रतिमाएं बार बार चूना पोते जाने के कारण दब गई है। मंदिर के बीचोंबीच बने गरूड़ ध्वज से संगमरमर की गरूड मूर्ति हाथ जोडें हुए श्री केशवरायजी को देख रही है।रामानंदी संप्रदाय के संस्थापक, पीठ, नियम व इतिहासइसी प्रकार पाटन के दक्षिणी छोर पर भगवान सुव्रतनाथ का जैन मंदिर स्थित है। जिसमें जैन तीर्थंकरों की विविध रंग के पत्थरों की कलात्मक प्रतिमाएं है। मुख्य छतरी के नीचे एक गुहा है जिसे “भैं देहड़ा” कहा जाता है। इसके अलावा केशवरायपाटन के दर्शनीय स्थलों में मैत्री के हनुमान का मंदिर नगर के उत्तर पूर्व में लगभग छः फर्लांग की दूरी पर स्थित है। मंदिर अति प्राचीन शिवालय कहा जाता है। जिसमें महावीर जी की स्थापना होल्कर द्वारा की गई बताते है। पुराण के अनुसार मैत्रावरुण ऋषि ने इस स्थान पर तप किया था। फिर ब्रह्मा जी ने यहां श्वेत वाहन पर आरूढ हो शुभ्ररूप से प्रकट हुए और यज्ञ पूरा होने पर यज्ञकुंड को जल पूर्ण कर शिवलिंग रूप से अवस्थित हुए।गलियाकोट दरगाह राजस्थान – गलियाकोट दरगाह का इतिहासबराह तीर्थ पाटन से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह बूंदी रोड़ से लगभग पचास गज दूर स्थित हैं। यह मंदिर भी बहुत पुराना है। धरती पर बहुत पुराने समय का फर्श है। गुम्बद पर सिंह प्रतिमाएं बनी है। मंदिर में वराह भगवान की मूर्ति बड़ी सुडौलता व सावधानी से गढ़ी गई है। जो लगभग साढ़े चार फीट की है। एक और दर्शनीय स्थान है जल के जम्बूजी नदी के मध्य होने से यह स्थान वर्षा काल में जलमग्न हो जाता हैं। यह ठीक उस स्थल पर जहाँ नदी पूर्व की ओर मुडती है। इसे श्वेत वाहन सुखेश्वर तीर्थ भी कहा जाता हैं। यहां दो शिवलिंग व नंदी की प्रतिमा है। अवंतिका पुरी के सुदेव ब्राह्मण की अंतर्कथा इस के साथ जुडी हुई है।केशवरायपाटन मंदिर के सुंदर दृश्यइनके अलावा भी केशवरायपाटन के दर्शन योग्य स्थलों में कितने ही देवालय है। जिनका सबका अपना अपना अलग पौराणिक इतिहास है। इनमें रूद्रतीर्थ, ऋणमोचन तीर्थ, स्वर्गद्वार, गौ तीर्थ, पंचरूद्र अथवा अग्नितीर्थ, सौपर्ण तीर्थ, सारवथ, ब्राह्मणी सर, वैकुंठ श्वेतवाहन, विश्राम तीर्थ, मुक्ति तीर्थ, श्री करकरा भैरव आदि प्रमुख है। केशवराय पाटन का महत्वहरिवंश पुराण तथा वायु पुराण इन प्रतिमाओं की कीर्ति कथा तथा इस समुचे प्रदेश के आख्यानों से भरे हुए हैं। कहते है कि परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर मानविक शांति के लिए इसी स्थान पर तप किया था। इसके अलावा भगवान विष्णु कल्पवृक्ष लाते समय यहां विश्राम के लिए रूके थे। और पांड़व भी युधिष्ठिर के साथ जंबुकाराय की यात्रा के समय यहां पधारे थे।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं श्री केशवरायजी व चारभुजा की मूर्तियों के संबंध मे एक पौराणिक आख्यान यह भी है कि राजा रंतिदेव के यज्ञ व तप से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वर दिया “राजन” जम्बुकाराय में पाटन नामक पुण्य क्षेत्र में जहाँ तुम्हारे यज्ञ से उत्पन्न चर्मरावती नामक गंगा के किनारे जम्बू भार्गेश्वर शिव विराजमान है। वहीं जाकर तुम मेरी आराधना करो तुम्हारे ध्यानानुसार वहां मेरे दो सुंदर विग्रह श्याम और शुभ्र इस नदी से प्रकट होगें। श्याम विग्रह मे तुम्हारी भी प्रतिमाएं होगीं उनकी सेवा कर अंत में तुम मेरी उसी विग्रह में समाविष्ट हो जाओगे। राजा रंतिदेव यह सुनकर कार्तिक कृष्ण अष्टमी को सपरिवार पाटन आएं। तथा नवमी को उन्होंने ऋषि मुनियों सहित परिक्रमा की व यज्ञ किया, फिर जल में फूलों की डालियां भगवान के आदेशानुसार बहाई, वे जहाँ एकत्र हुई वहां भगवान के दो विग्रह एक श्याम वर्तमान चारभुजा जी व दूसरा शुभ्र वर्तमान केशवरायजी प्राप्त हुए। जिन्हें राजा ने कार्तिक शुक्ला 11 शुक्रवार को पधराया तथा पूर्णिमा तक विशेष महोत्सव किया। तथा विक्रमी सन् 1698 में जब शत्रुशल्य जी ने इन प्रतिमाओं को केशवरायजी का वर्तमान मंदिर बनाकर उसमें स्थापित किया।ऋषभदेव मंदिर उदयपुर – केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थानऔर इनकी सेवा पूजा के लिए ब्रजनाथ जी की पद्धति का वल्लभ संप्रदाय वाला विधान घोषित किया और अब तक इनकी पूजा उसी ब्रजनाथ जी के विधान से चली आ रही है। जिसके अंतर्गत मंगल आरती, स्नान, श्रृंगार, कीर्तन, कथा पुराण, श्रवण, श्रृंगार विसर्जन, राजभोग, शयन, उत्थापन, महाभोग, श्रृंगार धारण, सांयकाल आरती, भजन कीर्तन, मृगादिगान, व्यालू भोग, नर्तकियों का गान व शयन के कार्यक्रम दिनचर्या के रूप में होते है। यह क्रम प्रातःकाल तीन बजे से रात्रि नौ बजे तक चलता रहता है। इतिहास के अनुसार हम्मीर रणथंभौर वाले ने श्री जम्बुकेश्वर का रत्नों से पूजन कर राज महिषी सहित तुलादान किया था। यह राज्य बूंदी के अंतर्गत आता है किन्तु बूंदी के राव राजा उम्मेद सिंह ने सन् 1801 विक्रमी मे केशवरायपाटन तथा बरौधन के परगने ब्रजनाथ जी को भेंट कर दिये थे। बाद में यह स्थान मरहठों के अधिकार में चला गया जिसमें मालगुजारी के दस मे से छः हिस्से सिन्धिया लेता था और चार हिस्से होल्कर इस समय यह बूंदी जिले में है। इस प्रकार केशवरायपाटन आध्यात्मिक पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व की लोक नगरी है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताए। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click 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