ओंकारेश्वर दर्शन – ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग खंडवा मध्य प्रदेश Naeem Ahmad, December 30, 2017February 26, 2023 ओंकारेश्वर दर्शन:- प्रिय पाठको हमने अपनी द्वादश ज्योतिर्लिंग दर्शन यात्रा के अंतर्गत पिछली कुछ पोस्टो में द्वादश ज्योतिर्लिंलोंं में से :-सोमनाथ ज्योतिर्लिंगत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहासकेदारनाथ धाम का इतिहासकाशी विश्वनाथ धाममल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगभीमशंकर ज्योतिर्लिंगवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगघुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंगनागेश्वर ज्योतिर्लिंगकी यात्रा की और उनके बारे में विस्तार से जाना अपनी इस पोस्ट में हम ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करेगे और उसके बारे में विस्तार से जानेगें। ओंकारेश्वर दर्शन के अंतर्गत हम जानेगें कि :- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है? ओंकारेश्वर मंदिर कहां है? ओंकारेश्वर का धार्मिक महत्व क्या है? ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी क्या है? ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण किसने कराया? ओंकारेश्वर दर्शन कैसे करे? ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग किस नदी के तट पर स्थित है? ओंकारेश्वर की आरती का टाइम टेबल क्या है? ओंकारेश्वर के दर्शनीय स्थल कौन कौन से है? ओंकारेश्वर का इतिहास? ओंकारेश्वर किस लिए प्रसिद्ध है? ओंकारेश्वर के घाट कौन कौन से है? ओंकारेश्वर में क्या चढावा चढाया जाता है? ओंकारेश्वर के सुंदर दृश्यContents1 2 ओंकारेश्वर दर्शन के अंतर्गत सबसे पहले जानते है कि ओंकारेश्वर कहां स्थित है? और किस नदी के तट पर है।2.1 ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा2.1.0.0.0.1 ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग – ममलेश्वर मंदिर2.1.0.0.0.2 अब तक की अपनी इस पोस्ट में हमने ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के दर्शनके साथ विष्णुपुरी के दर्शनीय मंदिर के बारे में जाना। ओंकारेश्वर दर्शन के सम्मपूर्ण होने के बाद आप चाहे तो यहा आस पास स्थित अनेक धार्मिक, दिव्य, पुण्य मंदिरो और स्थोलो की यात्रा कर सकते है जिनका विवरण हम आगे दे रहे है2.1.1 Share this:2.1.2 Like this:ओंकारेश्वर दर्शन के अंतर्गत सबसे पहले जानते है कि ओंकारेश्वर कहां स्थित है? और किस नदी के तट पर है।ओंकारेश्वर भारत के राज्य मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के ओंकारेश्वर नगर में नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। नर्मदा नदी जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता हैऔर यह गोदावरी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। यहा आकर नर्मदा नदी दो धाराओ या आप कह सकते है कि दो भागो में बट जाती है। नर्मदा से निकली इसी एक धारा को कावेरी कहा जाता है आगे जाकर इन दोनो धाराओ का संगम हो जाता है यानिकि नर्मदा और उससे निकली धारा कावेरी आगे जाकर एक हो जाती है। नर्मदा और कावेरी के बीच जो स्थान बचता है वह मान्धाता टापू कहलाता है। इस मान्धाता टापू का क्षेत्रफल लगभग एक वर्ग किलोमीटर होगा। यह टापू एक पहाडी नुमा कुछ ढलावदार है। इस मान्धाता टापू पर ही ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और मंदिर स्थित है। इस मान्धाता टापू पर महाराजा मान्धाता ने भगवान शंकर जी की आराधना की थी। इसी से इस टापू का नाम मान्धाता पड गया। इस मानधाता टापू का आकार प्रणव से मिलता जुलता है।ओंकारेश्वर दर्शन के अंतर्गत अब ओंकारेश्वर के धार्मिक माहात्म्य क्या है? यह जान लेते है।स्कंदपुराण, शिवपुराण, वायुपुराण आदि धार्मिक ग्रंथो में ओंकारेश्वर की महिमा का वर्णन मिलता है। ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। यहा 38 तीर्थ और 33 करोड देवता वास करते है। 108 प्रभावी शिवलिंंग और भगवान शंकर की कृपा से यह देवस्थान के तुल्य है। ऐसा माना जाता है कि यहा जो मनुष्य अन्नदान, तप या पूजा करते समय अपनी देह का त्याग करते है, वो शिवलोक में निवास करते है। यह तीर्थ सदा सैकडो देवताओ तथा ऋषि सघो द्वारा सेवित है। इसलिए यह महान तथा पवित्र है। ओंकारेश्वर दर्शन मात्र से परमधाम की प्राप्ति और संपूर्ण अभिलाषाए पूर्ण होती है।ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथाएक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि विंध्य पर्वत ( अपने आधिदैवत रूप से ) यहा ओंकारयंत्र में तथा पार्थिवलिंग में भी भगवान शंकर की आराधना करता था। विंध्य पर्वत की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए। और वर मांगने को कहा। तब विंध्य पर्वत ने भगवान शिव से वही दिव्य रूप में नित्य स्थित रहने का वरदान मांगा। तभी से भगवान शंकर वहा दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित है। ओंकारयंत्र के स्थान में उनका ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है और पार्थिवलिंग के स्थान में ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग है।अब आप सोच रहे होगें की दो ज्योतिर्लिंग यहा कैसे आ गए जबकि द्वादश ज्योतिर्लिंगो में गणना तो ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिग कि है। यह सही है कि द्वादश ज्योतिर्लिंगोंं में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की गणना है। इस ज्योतिर्लिंग की एक विशेषता यह है कि यहा दो ज्योतिर्लिंग है ओंकारेश्वर और अमलेश्वर। अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग को ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। इन दोनो को गिनती करते समय एक ही ज्योतिर्लिंग करके गिना जाता है जिसका कारण ऊपर दी गई कथा से स्पष्ट होता है। कि विंध्य पर्वत के अपने दो रूपो में शिव की आराधना की थी।दूसरी एक और प्रचलित कथा के अनुसार मान्धाता टापू पर महाराजा मान्धाता ने भगवान शंकरजी की घोर तप व तप्स्या की थी। राजा मान्धाता की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मान्धाता को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। मान्धाता ने भगवान शिव से वही वास करने की विनती कि उसके बाद भगवान शंकर दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए यहा अवस्थित हो गए।अब तक की अपनी इस पोस्ट में हमने ओंकारेश्वर कहां स्थित है? ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व क्या है? और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथाओ के बारे में जाना चलिए अब ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए चलते है।विष्णुपुरीयहा नर्मदा नदी के किनारे जो बस्ती है उसको विष्णुपुरी कहते है, बस या कार द्वारा आप यहा तक पहुंचते है। यहा नर्मदा जी का पक्का घाट है। नौका द्वारा नर्मदा जी को पार करके यात्री मान्धाता टापू पर पहुचते है। वैसे आप अगर आप नौका से नही जाना चाहते है तो यहा ऋषिकेश के लक्ष्मण झुले की तर्ज पर एक पुर बना हुआ है उससे आप पैदल भी जा सकते यह मार्ग कुछ लम्बा है लगभग तीन किलोमीटर पड जाता है। नौका से उस ओर जब आप उतरते है उस ओर भी नर्मदा जी पर पक्का घाट बना हुआ है। यहा घाट के पास नर्मदाजी में कोटितीर्थ या चक्रतीर्थ माना जाता है। यही पर यात्री नर्मदा जी में स्नान करने के बाद सीढियो के ऊपर चढकर मंदिर में दर्शन करते है। मंदिर तट पर तथा कुछ ऊंचाई पर है। मंदिर में दर्शन से पहले नर्मदाजी में स्नान करने की परम्परा है। इसलिए दर्शन से पहले स्नान करने की परम्परा हैओंकारेश्वर मंदिरओंकारेश्वर मंदिर चार मंजिला है। और इसकी हर एक मंजिल पर अलग अलग देवता विराजमान है। जिस द्वार से हम मंदिर में प्रवेश करते है वह द्वार छोटा है। ऐसा लगता है जैसे गुफा में जा रहे हो। पहली मंजिल पर ओंकारेश्वर के दर्शन होते है। श्री ओंकारेश्वर की मूर्ती अनगढ है। यह मूर्ति मंदिर के ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर हटकर है। मूर्ति के चारो ओर जल भरा हुआ है। पास ही में पार्वती जी की मूर्ती है। मंदिर के अहाते में पंचमुख गणेशजी की मूर्ती है। ओंकारेश्वर के सुंदर दृश्य ओंकारेश्वर मंदिर में सिढिया चढकर दुसरी मंजिल पर जाने पर श्री महाकालेश्वर लिंग मूर्ति के दर्शन होते है। यह मूर्ती शिखर के नीचे है। श्री महाकालेश्वर के दर्शन के बाद फिर सीढिया चढकर तीसरी मंजिल पर यात्री पहुंचते है। तीसरी मंजिल पर श्री सिद्धनाथ जी के दर्शन होते है इसी प्रकार चौथी मंजिल पर जाने पर श्री गुप्तेश्वर एंव ध्वजाधारी शिखर देवता के दर्शन होते है।श्री ओंकारेश्वर जी की परिक्रमा में रामेश्वर मंदिर तथा गौरी – सोमनाथ के दर्शन हो जाते है। ओंकारेश्वर मंदिर के पास अविमुक्तेश्वर, ज्वालेश्वर, केदारेश्वर आदि कई मंदिर है।ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग – ममलेश्वर मंदिरअमलेश्वर भी ज्योतिर्लिंग है जैसा की हम पहले ही बता चुके है कि अमलेश्वर को ही ममलेश्वर कहा जाता है। यह मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर विष्णुपुरी में है। यह भव्य मंदिर महारानी अहिल्याबाई होलकर का बनवाया हुआ है। गायकवाड राज्य की ओर से नियत किए हुए बहुत से ब्राह्मण यहा पार्थिव पूजन करते रहते है। यात्री चाहें तो पहले ममलेश्वर के दर्शन करके तब नर्मदा पार होकर ओंकारेश्वर जाएं परंतु नियम बिल्कुल इसके विपरित है। पहले ओंकारेश्वर के दर्शन करने का नियम है और लौटते समय ममलेश्वर के दर्शन करने का नियम है। ममलेश्वर मंदिर प्राचीन वास्तुकला एंव शिल्पकला का अदभुत नमूना है। जिसकी देखरेख अहिल्याबाई खासगी ट्रस्ट की ओर से की जाती है और यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा घोषित संरक्षित स्मारक है।ममलेश्वर के दर्शन के बाद यहा स्थित अन्य मंदिर स्वामी कार्तिक, अघोरेश्वर गणपति व मारूती का दर्शन करते हुए ब्रह्मेश्वर, काशी- विश्वनाथ व गंगेश्वर के दर्शन करके विष्णुपुरी लौटकर भगवान विष्णु के दर्शन करे। यही कपिलजी, वरूण, वरूणेश्वर, नीलकंठेश्वर होकर मार्कण्डेय आश्रम जाकर मार्कण्डेय शिला और मार्कण्डेश्वर के दर्शन करे।अब तक की अपनी इस पोस्ट में हमने ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के दर्शनके साथ विष्णुपुरी के दर्शनीय मंदिर के बारे में जाना। ओंकारेश्वर दर्शन के सम्मपूर्ण होने के बाद आप चाहे तो यहा आस पास स्थित अनेक धार्मिक, दिव्य, पुण्य मंदिरो और स्थोलो की यात्रा कर सकते है जिनका विवरण हम आगे दे रहे हैचौबीस अवतारओंकारेशकवर से लगभग एक मील दूर जहा कावेरी धारा नर्मदा जी से पृथक हुई है, वहा चौबीस अवतार तथा पशुपतिनाथ जी का मंदिर है। कुछ दूरी पर पृथ्वी पर लेटी रावण मूर्ति है। यह स्थान दूसरे दिन की यात्रा में आता है।कुबेर भंडारीचौबीस अवतार से एक मील आगे यह स्थान है। यहा कावेरी नर्मदा मे मिलती है। नर्मदा के दक्षिण तट पर कावेरी संगम पर शंकर जी का प्राचीन मंदिर है। कहते है कि यहा कुबेर ने तपस्या की थी। इसी से यह शिव मंदिर कुबेरेश्वर मंदिर कहा जाता है। संगम से चार मील पश्चिम में च्यवनाश्रम है।सातमातृकाकुबेर भंडारी से लगभग तीन मील दूर यह स्थान नर्मदा के दक्षिण तट पर है। ओंकारेश्वर से यात्री प्राय: यहा नौका से आते है। यहा वाराही, चामुंडा, ब्राह्मणी, वैष्णवी, इंद्राणी, कौमारी और माहेश्वरी इन सात मातृकाओ के मंदिर है।सीता वाटिकासातमातृका से लगभग सात मील दूर यह स्थान है। कहा जाता है कि यहा महर्षि बाल्मीकि का आश्रम था। यही जानकीजी ने निवास किया था। यहा सीता कुंड, राम कुंड तथा लक्ष्मण कुंड है।कोटेश्वरओंकारेश्वर से 4 मील दूर नर्मदा जी के प्रवाह की दिशा में उत्तर तट पर कोटेश्वर महादेव का मंदिर है।अगर आप ओंकारेश्वर दर्शन अॉनलाइन करना चाहते है या अॉनलाइन दान करना चाहते या फिर विशेष दर्शन के लिए अॉनलाइन बुंकिंग कराना चाहते है तो आप ओंकारेश्वर की अधिकारिक वेबसाइट shriomkareshwar.orgorg जी पर करा सकते है। या अन्य किसी भी प्रकार की सुविधा व जानकारी के लिए आप ओंकारेश्वर की वेबसाइट पर सम्पर्क कर सकते है।कैसे पहुचेंपश्चिमी रेलवे की अजमेर – खंडवा लाइन पर खंडवा से 37 मील पहले ओंकारेश्वर रोड स्टेशन है। यहा से स्टेशन सात मील है। स्टेशन के पास से नर्मदा तक सडक है। स्टेशन से बसे ओंकारेश्वर केलिए चलती है। इसके अलावा इंदौर और रतलाम से भी गाडिया आसानी से मिल जाती है। प्रिय पाठको आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी, या कोई त्रुटी या सुझाव के लिए आप हमे कमेंट भी कर सकते है। आपके सुझाव आमंत्रित है।Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंगद्वादश ज्योतिर्लिंगभारत के धार्मिक स्थलभारत के प्रमुख मंदिरभारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरभारत में शिव के प्रधान मंदिरमध्य प्रदेश पर्यटन