इंदिरा गांधी की जीवनी, त्याग, बलिदान, साहस, और जीवन परिचय Naeem Ahmad, July 15, 2018March 30, 2024 इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर सन् 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद मे हुआ था। जहां इंदिरा गांधी के पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू और माता कमला नेहरू इस बालिका को पाकर झूम उठे थे, वही नेहरू परिवार का आनंद भवन इंदिरा को पाकर धन्य हो गया था। सौभाग्य से आगे चलकर वही बालिका स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के रूप में आसीन हुई, तथा गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष के पद पर भी आसीन होकर विश्व मे भारत का गौरव एवं मान बढाया। और किसी कुशल सारथी की तरह देश की बागडोर को अपने धैर्य, साहस और मानसिक संतुलन का सही परिचय देते हुए, उन्होंने राष्ट्र को क्रमशः उन्नति की ओर आग्रसर किया। आपने इस लेख मे हम इस महान नारी श्रीमती इंदिरा गांधी की जीवनी, इंदिरा गांधी का जीवन परिचय, इंदिरा गांधी की जीवन गाथा, इंदिरा गांधी हिस्ट्री इन हिंदी और उनके जीवनी से जुडी रोचक जानकारी जानेंगे। जो पाठको को उनके जीवन के बारे मे तथा विधार्थियों को इंदिरा गांधी के जीवन पर निबंध लिखने मे भी मददगार साबित होगी।इंदिरा गांधी की जीवनी – इंदिरा गांधी का जीवन परिचय“मेरी हार्दिक इच्छा है कि मरने से पूर्व जवाहर की संतान का मुख देख लू”।“आप मृत्यु की बात क्यो करते है, अभी तो जवाहर की संतान के साथ आपको खेलना है, उसे बडा होते देखना है”।“इच्छा तो मेरी भी यही है, लेकिन जब से इस रोग शय्या पर लेटा हूँ, मन मे बुरे बुरे ख्याल आते रहते है”।तभी किसी ने आकर सुचना दी– “श्रीमान पोती हुई है, बधाई हो”।“अरे! कहाँ है शिशु? उसे जल्दी से मेरे पास लाओ?” इतना कहते कहते रोग शय्या पर पडे पंडित मोतीलाल नेहरू उठ खडे हुए।नवजात शिशु को उनके पास लाया गया तो वे खुशी से झूम उठे– “आज तो आनंद भवन मे रोशनी ही रोशनी कर दो , मेरी पोती जो आयी है।“श्रीमान! यह बच्ची आपके परिवार और जवाहर की वास्तविक उत्तराधिकारी बनकर आपके सपनों को पूरा करेगी”। वहां उपस्थित किसी सज्जन ने कहा।इंदिरा को पाकर यह खुशी इंदिरा के दादा पंडित मोतीलाल नेहरू की थी।श्रीमती इंदिरा गांधी का फाइल चित्रइंदिरा गांधी का बचपनबचपन मे इंदिरा का नाम प्रियदर्शिनी रखा गया, अर्थात जो देखने सुनने मे सुंदर और भला लगे। नाम के अनुरूप लगने वाली प्रियदर्शिनी को पिता प्यारा से इंदु कहा करते थे।नेहरू परिवार ने भरपूर धन, वैभव और यश कमाया था। उनका आनंद भवन आवास गृह ही नहीं, बल्कि स्वाधीनता सेनानियों का देवालय भी था, जहां प्रतिदिन राष्ट्रीय नेताओं की भीड़ लगी रहती थी, और राष्ट्रीय हित के संबंध में विचार विमर्श होता रहता था।आनंद भवन मे ही रहकर प्रियदर्शिनी धीरे धीरे बडी होने लगी। घर पर माता पिता की राजनीतिक सरगर्मियों और गिरफ्तारियों को देखते हुए, बालिका इंदिरा बचपन से ही राजनीति का पाठ पढने लगी।सार्वजनिक स्थलों में हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों के अपमान को देखकर इंदिरा का ह्रदय विचलित हो उठता था। और हिन्दुस्तानियों द्वारा किए गए प्रतिकार की बात सुनकर प्रसन्न हो उठता था।कमला देवी चट्टोपाध्याय की जीवनी – स्वतंत्रता सेनानीअभी इंदिरा की आयु मात्र बारह तेरह वर्ष की ही थीकि उसके नन्हें से दिल मैं हिन्दुस्तानियो का अपमान देख सुनकर रोष की आग जल उठी, और उसने छोटे छोटे बच्चों को इकठ्ठा करके एक सेना का निर्माण किया। बच्चों के बालसुलभ क्रियाकलापों को देखते हुए माता कमला देवी ने सेना को “वानर सेना” नाम दे दिया।इंदिरा की यह वानर सेना कांग्रेस की छुपे तौर से सहायता करती थी, अंग्रेजों ने इस बीच उसे गिरफ्तार भी किया, तब नन्ही इंदु को लगा कि वह एकदम बडी हो गई हैं। खेल खेल मे किया गया उसका प्रियास दर्शाता था, कि बचपन से ही उसमें नेतृत्व का गुण उभर आया है।इंदिरा गांधी को अपनी माता से बेहद लगाव था। कमला देवी विदुषी महिला थी और भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी गहरी निष्ठा थी। भारत की धरती और भारतीय संस्कृति के प्रति इंदिरा मे जो प्यार था, वह मां के ही कारण था। वह कहा करती थी– पिताजी मुझसे आकाश मे उडने की बात करते है, और माताजी मुझे धरती पर ढंग से रहना सिखाती है।पंडित जवाहर लाल नेहरू की एक मात्र संतान होने के कारण इंदिरा का लालनपालन बडे लाड़ प्यार से हुआ। उनकी शिक्षा पूना, स्विट्जरलैंड, और ऑक्सफोर्ड मे हुई। शांतिनिकेतन मे कुछ दिन गुरूदेव रविन्द्रनाथ जी के साथ भी रहने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ, किंतु इसी बीच मां कमला नेहरू का निधन हो गया। दृढ़ निश्चय इंदिरा ने इस आघात को बडी कुशलता से झेला। इंदिरा गांधी का राजनीतिक जीवनऑक्सफोर्ड शिक्षा के दौरान ही इंदिरा ने ब्रिटिश मजदुर दल मे शामिल होकर राजनीति का दूसरा पाठ पढा था। मात्र 21 वर्ष की आयु मे वे कांग्रेस दल की नियमित सदस्य बन गई। सन् 1942 के “भारत छोडो” आंदोलन मे भाग लेने पर उन्हें 13 महिने के लिए जेल भी जाना पडा।राजनीतिक गतिविधियों के दौरान युवा इंदिरा की मुलाकात कांग्रेस के ही एक सधे, तपे एवं आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी श्री फिरोज गांधी से हुई। जल्दी ही दोनों ने शादी का निर्णय ले लिया, परंतु शादी के कुछ दिन बाद ही नवदंपति को जेल जाना पडा। यही से उनके जीवन संघर्ष की महान शुरुआत हुई। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस अवसर पर कहा था कि, “यदि जीवन का आनंद लेना है तो उसके लिए चुकाई जाने वाली कीमत की परवाह मत करो”।कमला नेहरू की जीवनी – कमला नेहरू का जीवन परिचयपिता की दुलारी इंदु अब लोगों के बीच श्रीमती इंदिरा गांधी के रूप में जानी जाने लगी।भारत के स्वतंत्र होने पर जब पंडित नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तो इंदिरा जी का अधिकांश समय नेहरूजी के साथ ही बीतता था। कई बार वे उनके साथ विदेश यात्रा पर गई, जहाँ उनका संपर्क अनेक राजनेताओं और विश्व के नेताओं के साथ हुआ। फरवरी 1959 मे वे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में सत्तारूढ़ दल की अध्यक्ष चुनी गईं।राजनितिक गतिविधियों की सरगर्मी के दौरान ही वे दो बेटों राजीव और संजय की मां भी बन गई थी। राजनीति में उन्होंने जनता को अब तक अपनी योग्यता का परिचय दे दिया था। तभी अचानक 8 सितंबर सन् 1960 को उन्हे एक भारी सदमा सहना पड़ा। जब उनके पति उनका साथ छोडकर इस दुनिया से चले गए। इस असहनीय दुख की कल्पना सहज ही जा सकती हैं।नेहरूजी ने उन्हें इस दुखद घडी में संभाला, लेकिन मात्र चार साल पश्चात ही 1964 में उनके सिर से पिता का साया भी उठ गया। नेहरू जी की मृत्यु के पश्चात ही बने प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने इंदिरा जी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाकर अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।अकस्मात ही श्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर देश के सामने एक बार फिर यह समस्या आई की देश की बागडोर किसे सौंपी जाए। किसी एक नाम पर एकमत न होने पर श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री मोरारजी देसाई के मध्य चुनाव की नौबत आ गई। इस चुनाव में श्रीमती गांधी को 355 तथा श्री देसाई को 169 मत प्राप्त हुए। और इस प्रकार उन्हें देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री पद सभांलते ही उनके सामने परेशानियों का दौर आरंभ हो गया।सन् 1971 का मध्यावधि चुनाव उनके नेतृत्व के लिए एक कसौटी था। विरोधी पक्ष एक जुट होकर “इंदिरा हटाओ” अभियान में लगे हुए थे। तब इंदिरा जी ने “गरीबी हटाओ” का नारा देकर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। इस प्रकार जनता का अटूट विश्वास जो पंडित नेहरू को प्राप्त था। उससे भी एक कदम आगे बढकर जनता ने इंदिरा जी को अपना विश्वास दे दिया। उन्हीं दिनो 9 अगस्त सन् 1971 को राष्ट्र हित मे उन्होंने सोवियत रूस से 20 वर्षीय मैत्री संधि करके भारतीय जनता को बाहरी खतरो से आश्वस्त कर दिया।चक्रवर्ती विजयराघवाचार्य का जीवन परिचय हिन्दी मेंयही समय था जब दुनिया के सामने बंगलादेश का प्रश्न आया। पाकिस्तानी शासको की नीति और बर्बरता पूर्ण अत्याचार के कारण लाखो की संख्या में उस वक्त के पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) को छोडकर शरणार्थी भारत आए। इस से भारत का अर्थतंत्र लडखडाने लगा। लाखो शर्णार्थियों पर नृशंस अत्याचारों से देश मूकदर्शक बनकर न बैठ सका, इससे श्रीमती गांधी का नारी ह्रदय पसीज उठा।जब शांति और राजनीतिक समाधान के सारे प्रयत्न विफल हो गए। और भारत द्वारा बंगलादेश की मुक्तिवाहिनी से सहानुभूति को देखकर पाकिस्तान चिढ़ गया। इसी चिढ़ मे उसने भारत पर आक्रमण कर दिया। चौदह दिन तक चले भारत पाक युद्ध में भारत की ऐतिहासिक विजय ने श्रीमती गांधी की शक्ति और दूरदर्शिता पर अपनी अमिट छाप लगा दी। भारत के हाथो जहाँ पाकिस्तान की हार हुई, वही बंगलादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का निर्माण भी हुआ।विश्व के बडे बडे राजनेता यह स्वीकार करने के लिए बाध्य हो गए, कि श्रीमती गांधी मे अदम्य साहस है, और चुनौतियों का सामना करने की अभूतपूर्व क्षमता भी है।28 जून सन् 1972 को शिमला मे भारत और पाकिस्तान के मध्य ऐतिहासिक शिमला समझोता हुआ और श्रीमती गांधी एवं तत्कालीन पाक राष्ट्रपति श्री भुट्टो मे परस्पर मैत्री का हाथ बढा।इसी बीच देश मे विरोधी तत्वों ने अराजकता एवं अशांति फैलाने के प्रयास आरंभ कर दिए। देश की राजनीति एक अजीब सी स्थिति मे फंस गई। देश के आंतरिक संकट पर काबू पाने के लिए 25 जून सन् 1975 को उन्होंने देश मे आपातकालीन घोषणा लागू कर दी, और देश को एक बीस सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम दिया, जिसके फलस्वरूप देश मे पुनः प्रगति और खुशहाली का दौर शुरू हो गया।लाला लाजपत राय का जीवन परिचय हिन्दी मेंसन् 1977 के चुनावों मे वह समय आया जब उन्हें अपनी हार का करारा झटका लगा। उनका दल इस चुनाव मे जनता का विश्वास खो बैठा। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने उन्हें अनेक प्रकार से तंग करना आरंभ कर दिया। उनके विरुद्ध अनेक आयोग बिठा दिए, किंतु इंदिरा जी ने मुस्कराहट के साथ समस्त बाधाओं का सामना किया।अपनी कटु आलोचना तक का इंदिरा गांधी जी ने हास्य एवं मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया। एक बार उन्होंने अपने स्वस्थ और प्रसन्न रहने के रहस्य के बारे मे पत्रकारों को बताया था कि— “जनता का मेरे प्रति प्रेम एवं सदभाव तथा प्रतिदिन एक सैंडविच मुझे प्रसन्न तथा स्वस्थ रखता है”।अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए उन्होंने “जनता सरकार” को समय से पूर्व ही हटने को बाध्य कर दिया, सन् 1980 मे मध्यावधि चुनावों की घोषणा का जनता ने स्वागत किया। जनता को अपनी पिछली भूल का अहसास हो गया था। इस चुनाव मे श्रीमती गांधी ने अपनी पिछली पराजय का भरपूर बदला लिया और भारी विजय प्राप्त कर पुनः प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो गई। इंदिरा जी का चौथी बार प्रधानमंत्री बनना एक चमत्कारी घटना है।मदनमोहन मालवीय का जीवन परिचय हिन्दी मेंश्रीमती इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी जो कि अब तक युवा नेता के रूप मे देश मे विख्यात हो चुके थे। अब अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महामंत्री के रूप मे इंदिरा जी का हाथ बंटाने लगे थे, परंतु भगवान को कुछ और ही स्वीकार था, क्योंकि दिल्ली में अचानक वे एक हवाई दुर्घटना के शिकार हो गए। और असमय ही वे संसार से विदा हो गए। सारा देश शोक मग्न हो गया, इंदिरा जी के लिए यह एक गहरा सदमा था। परंतु उन्होंने बडे धैर्य और साहस से काम लिया और इतनी बडी चोट को अंदर ही अंदर पी लिया।एक राष्ट्रनेता या राष्ट्र निर्माता के जीवन मे तो यह भावना एक अनिवार्य व्यवहार की तरह होती है। श्रीमती गांधी इस व्यवहार मे बिल्कुल खरी उतरी।श्रीमती इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और कार्यकुशलता को देखकर दुनिया के बडे बडे राजनीतिज्ञ दंग रह गए। 1982 मे नवम एशियाई खेल श्रीमती गांधी के दृढ़ निश्चय के कारण ही संभव हो सके। खेलकूद के सबसे बडे ओलंपिक स्वर्णाहार से सम्मानित होने वाली श्रीमती गांधी न केवल भारत की वरन् विश्व की सर्वप्रथम महिला है। निःसंदेह यह भारत के लिए बडे गर्व की बात है।1983 के दिल्ली शिखर सम्मेलन में लगभग101 देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष शामिल होने आए। और उन्होंने श्रीमती गांधी को गुट निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व सौंपा।इस प्रकार श्रीमती गांधी दुनिया का नेतृत्व करने वाली तीसरी महान शक्ति बन गई। नेशनल इंटीग्रेशन असेंबली मे अंतर्राष्ट्रीय सूझबूझ और मानवाधिकारो के लिए की गई सेवाओं के लिए उन्हें 82-83 की सर्वश्रेष्ठ महिला चुना गया।एनी बेसेंट का जीवन परिचय हिन्दी मेंइन्हीं उपलब्धियों के कारण उन्हें भारत के सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। नीदरलैंड सरकार ने उन्हें 1983 मे एशियाई विभूति से भी सम्मानित किया। हमारे यह लेख भी जरूर पढे:–रानी पद्मावती की जीवनीझांसी की रानी की जीवनीबेगम हजरत महल का जीवन परिचयरानी चेन्नम्मा का जीवन परिचयरानी दुर्गावती की जीवनी दुर्भाग्य से देश में अराजकता फैलाने वाले तत्व कभी धर्म के नाम पर तो कभी क्षेत्रीयता की भावना भड़काकर अशांति पैदा करने की कोशिश करते रहे है। असम और पंजाब समस्या उन्हीं की देन है। इंदिरा जी असम समस्या को शांत कर थोड़ा दम भी न ले पाई थी कि पंजाब मे उग्रवादियों के माध्यम से इन तत्वों ने अशांति पैदा करने का प्रयत्न किया। पंजाब में दिन प्रतिदिन हत्याओं का सिलसिला जारी होने लगा।3 जून सन् 1984 को पंजाब मे “आपरेशन ब्लू स्टार” के माध्यम से सैनिक कार्यवाही करके विदेशी ताकतों के अरमानों को उन्होंने खंडित कर दिया। इसके बाद पंजाब में पुनः शांति सद्भावना का वातावरण बन गया।30 अक्टूबर सन् 1984 को उडीसा की दो दिन की यात्रा मे श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने सार्वजनिक सभा मैं कहा था कि– ” अगर देश की खातिर मेरी जान भी चली जाए तो मुझे गर्व होगा, मुझे चिंता नहीं कि मैं जीवित रहूं या न रहूं, जब तक सांस है तब तक मैं देश की सेवा करती रहूंगी। जब भी मेरी जान जाएगी, मेरे खून का एक एक कतरा भारत को मजबूती देगा और अखंड भारत को जीवित रखेगा”।उन्हें इसका ज्ञान भी न था कि आतंकवाद उनके इस कथन के अगले ही दिन अर्थात 31अक्टूबर सन् 1984 को उन्हें लील लेगा।प्रातः लगभग सवा नौ बजे श्रीमती गांधी सफदरजंग वाले अपने बंगले की ओर जा रही थी, जहां वीडियो फिल्म बनाने वाली एक आयरिश टीम के साथ उनका इंटरव्यू होना था। बंगले के बीच दरवाजा पार करके जब वे संकरी पगडण्डी पर चल रही थी कि तभी पगडण्डी के दोनो तरफ पेड और झाडिय़ों से सटे दो सुरक्षा कर्मियो ने दनादन गोलियां दागकर उन्हें छलनी कर दिया।सैयद हसन इमाम का जीवन परिचय हिन्दी मेंएकाएक घटनाक्रम इतनी तीव्र गति से हुआ कि एक पुरे युग का दर्दनाक अंत हो गया। इंदिरा जी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि जिसे वह अपने परिवार के सदस्य के समान मानती है, और जिसकी वफादारी की प्रशंसा किया करती है। वही विश्वास पआत्र सुरक्षा गार्ड अपने अन्य सहयोगी के साथ सौ गज की दूरी पर काल के रुप मे खडा होगा।लहुलुहान श्रीमती इंदिरा गांधी जी को एम्स पहुंचाया गया। डाक्टरों ने चार घंटे तक आपरेशन से गोलियां निकालने की कोशिश की और खून चढाया, परंतु हर संभव प्रयासों के बाद भी डाक्टर उनका अमूल्य जीवन बचाने मे असफल रहे, और उन्हें निराशा के शिवाय कुछ हाथ नही लगा। दिन के ढाई बजे उनका निधन घोषित कर दिया गया।उनकी हत्या की खबर सुनकर सारे देश मे शोक व्याप्त हो गया, हर चेहरा उदास हो गया और प्रत्येक आंख नम हो गई, क्योंकि देश की राजनीति पर लगभग दो दशक तक छाया रहने वाला व्यक्तित्व देश से छिन गया था।नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर का जीवन परिचय हिन्दी मेंस्व. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के जयेष्ठ पुत्र श्री राजीव गांधी उस समय पश्चिम बंगाल की यात्रा पर थे, यह दुखद समाचार मिलते ही वे अपनी यात्रा अधूरी छोड कर नई दिल्ली पहुंच गए।प्रधानमंत्री की निर्मम हत्या का समाचार सुनकर देश मे रोष की लहर फैल गई, देश की जनता गुस्से से भडक उठी। लोग नारे लगा रहे थे– गद्दारो को मार दो, खून का बदला खून से लो,।और फिर आसूओ मे डूबी आखों से खून टपकने लगा और दिल्ली ही नही वरन् सारा देश जलने लगा। देश के सभी हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भडक उठे। जनता बेकाबू हो गई।नए प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने प्रधानमंत्रीपद की शपथ लेने के फौरन बाद देशवासियों के नाम विशेष संदेश प्रसारित करते हुए देशवासियों से शांति कायम रखने तथा अधिकतम संयम से काम लेने की अपील की।शनिवार 3 नवंबर सन् 1984 को सायं तीन बजकर पचास मिनट पर शांति वन मे पंडित जवाहर लाल नेहरू की समाधि के पास वैदिक मंत्रों उच्चारण के साथ श्री राजीव गांधी ने अपनी मां की चिता मे अग्नि प्रज्वलित कर उन्हें अंतिम विदाई दी।वह ज्योतिपुंज जो इलाहाबाद के आनंद भवन मे उदित हुआ था, भारत की एक महान विभूति के रूप मे उभरकर पुनः ज्योति मे समा गया। श्रीमती इंदिरा गांधी स्वंय को पहाडो की बेटी कहा करती थी। उनकी इच्छा के अनुकूल उनकी अस्थियां और भस्मी हिमालय की ऊंची श्रृंखलाओ पर विसर्जित कर दी गई, शेष अस्थिकलश देश के सभी भागो मे ले जाकर पवित्र स्थानों मे विसर्जित किए गए, इस प्रकार उनकी अंतिम भौतिक यात्रा पूरी हुई।हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=”6215″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां जीवनी