हाड़ी रानी का जीवन परिचय – हाड़ी रानी हिस्ट्री इन हिन्दी Naeem Ahmad, November 29, 2018February 17, 2023 सलुम्बर उदयपुर की राज्य की एक छोटी सी रियासत थी। जिसके राजा राव रतन सिंह चूड़ावत थे। हाड़ी रानी सलुम्बर के सरदार राव रतन सिंह चूङावत की पत्नी थी। हाड़ी रानी भारत के इतिहास की वह वीर क्षत्राणी है। जिन्होंने अपने पति के मन की दुविधा को दूर करने के लिए अपने पति की मृत्यु से पहले ही सती हो गई थी। हाड़ी रानी की कहानी भारत के इतिहास की एक सहासिक कहानी है, अपने इस लेख मे हम हाड़ी रानी की जीवनी, हाड़ी रानी का जीवन परिचय, हाड़ी रानी की कहानी, हाड़ी रानी हिस्ट्री हिन्दी मे जानेगेंं हाड़ी रानी की कहानी रूपनगर की राजकुमारी रूपवती के रूप की प्रशंसा सुनकर बादशाह औरंगजेब ने बलवत उससे विवाह करना चाहा। जब रूपवती को यह समाचार ज्ञात हुआ, तब उन्होंने अपने कुल पुरोहित द्वारा उदयपुर के परम प्रतापी महाराणा राजसिंह जी पास एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था—- औरंगजेब मुझे जबरदस्ती ब्याहना चाहता है, परंतु क्या राजहंसिनी गिद्ध के साथ जाएगी! क्या पवित्र वंश की कन्या म्लेच्छ को पति बनाएगी! इस प्रकार के आशय पत्र मे लिखकर अंत में लिखा कि — सिसौदिया कुलभूषण और क्षत्रिय वंश शिरोमणि! मैं तुमसे पाणिग्रहण की प्राथना करती हूँ। शुद्ध क्षत्रिय रक्त तुम्हारी नसों में संचारित है। यदि शीघ्र न आ सकोगे और अपनी शरण में लेना स्वीकार न करोगे तो मैं आत्मघात करूगी। मेरी आत्महत्या का पाप तुम्हारे सिर पर लगेगा। पुरोहित ने यह पत्र महाराणा साहब को दिया, जो अपने सरदारों के साथ दरबार मैं बैठे हुए थे। पत्र को पढकर महाराणा जी कुछ विचारने लगे। चूड़ावत सरदार जो समीप ही बैठे थे, कहने लगे— महाराणा जी क्या बात है? पत्र पढ़कर किस चिंता में डूब गए हो? महाराणा जी ने वह पत्र चूडावत जी को दिया, जिसको पढ़कर उन्होंने कहा — यह बेचारी अबला मन से आपको वर मान चुकी है, अब आपका कर्तव्य है कि उसका पाणिग्रहण करें। हाड़ी रानी के बलिदान को दर्शाती मूर्ति कला महाराणा जी ने काफी विचार करने के बाद कहा— रूपनगर की राजकुमारी के धर्म और क्षत्रिय कुल गौरव की रक्षा करने के लिए सैन्य बल के साथ रूपनगर जाऊंगा, परंतु एक बात की चिंता है कि समय बहुत थोडा बच रहा है। और हम इतनी जल्दी युद्ध प्रबंध नही कर सकेंगे। इसलिए यदि बादशाह की सेना अधिक हुई तो घोर युद्ध होने से सब मारे जाएंगे। इस तरह से राठौरनी जी का मनोरथ सिद्ध न हो सकेगा और अंत में उनको आत्मघात करना ही पडेगा। शूरवीर चूड़ावत सरदार ने एक योजना सुझायी और कहा– थोडे से लोगों को साथ लेकर आप रूपनगर की राजकुमारी को ब्याहने पधारे और मैं पहुचने से पहले ही बादशाह की सेना को मार्ग में ही रोकता हूँ। इस सेना को मै उस समय तक रोके रहूंगा, जब तक आप राठौर राजकुमारी का पाणिग्रहण करके उदयपुर को न लौट आएंगे। महाराणा जी ने इस उदार सम्मति के लिए चूड़ावत की बडी प्रशंसा की और कहा— यदि आप ऐसा कर सकेंगे तो चिंता ही क्या है। आपने जो उपाय बताया वह ठीक है। सब सरदारों ने भी अपनी अपनी सेना साथ लेकर जाने का निश्चय किया। महाराणा जी ने उसी समय पत्र लिखकर ब्राह्मण को रूपनगर के लिए विदा किया। चूड़ावत भी तत्काल विदा हो अपनी राजधानी में आए और दूसरे दिन प्रातःकाल लडाई का डंका बजवाकर जब योद्धाओं सहित युद्ध के लिए प्रस्थान करने लगे तो उन्होंने अपनी नवयौवना हाड़ी रानी को महल के झरोखे में से झांकते हुए देखा। हाड़ी रानी का मुख देखते ही उनकी युद्ध उमंग कुछ मंद पड़ गई और मुखाकृति की कांति भी फिकी पड़ गई। वह उदास मन से महल पर चढ़े, परंतु रानी ने तुरंत पहचान लिया कि स्वामी का पहले जैसा तेज नही रहा। वह बोली— महाराज! यह क्या हुआ, कोई अशुभ समाचार प्राप्त हुआ है जो मुख कि कांति फीकी पड़ गई। जिस मन से आप डंका बजाकर चौक में आए थे। और उस समय आपकी मुखाकृति पर जो तेज विराजमान था, वह अब न जाने कहाँ उड़ गया? लडाई का बिगुल आपने जिस उत्साह से बजवाया था, अब वह मंद क्यों पड गया? क्या कोई शत्रु चढ़ आया है, जो लडाई का डंका बजवाया है? यदि ऐसा है। तो आपका मुख क्यों उतर गया है? लडाई का डंका सुनकर क्षत्रिय को तो लडाई का आवेश होना चाहिए था, परंतु आप इसके विरुद्ध शिथिल क्यों हो गए? कोई कारण अवश्य है, आपको मेरी सौगंध है, आप अवश्य बताएं। हाड़ी रानी की बाते सुनकर चूड़ावत जी ने कहा— रूपनगर की राठौर वंश की राजकुमारी को दिल्ली का बादशाह बलवत ब्याहने आ रहा है, और वह राजकुमारी मन वचन से हमारे राणा साहब को वर मान चुकी है। इसलिए प्रातःकाल ही राणा साहब उसे ब्याहने जाएंगे। बादशाह का मार्ग रोकने के लिए मेवाड़ की सारी सेना मेरे साथ जा रही है। वहां घोर संग्राम होगा। हमें वहां से लौटने की आशा नही है, क्योंकि बादशाही सेना के सामने हमारी सेना बहुत थोडी होगी। मुझे मरने का तो गम नहीं, हर मनुष्य को मरना है, यदि मैं मरने से डरूंगा तो मेरी माता की कोख को कलंक लग जाएगा, मेरे पूर्वजों चूड़ाजी के नाम पर धब्बा लग जाएगा। मरने से तो मैं नहीं डरता, न कोई हमेशा जिवित रहा है न मैं हमेशा जिवित रहूंगा। आगे पीछे सभी को मृत्यु के आगोश मे समाना है। परंतु मुझे केवल तुम्हारी चिंता है। तुम्हारा विवाह अभी हुआ है, अभी तुमने विवाह का सुख भी नहीं देखा। और आज मुझे मरने के लिए जाना पड़ रहा है। मुझे तुम्हारा ही विचार व्याकुल कर रहा है। चौक में आकर ज्यो ही तुम्हारा मुख देखा तो मेरा कठोर ह्रदय कोमल पड़ गया। यह सुनकर हाड़ी रानी बोली— महाराज! यह आप क्या कहते है! यदि आप रणक्षेत्र में विजय प्राप्त करेंगे, तो इससे बढ़कर मेरे लिए संसार में दूसरा कौनसा सुख है। मृत्यु का समय आने पर चलते चलते, खडे बैठे आथवा बातें करते अचानक ही मनुष्य काल कवलित हो जाता है। जिसकी मृत्यु नही, वह रणक्षेत्र में भी बचता है और जब मृत्यु समय आ जाता है। तो सुख शांति पूर्ण घर में भी नहीं बचता। घर में जब काल आकर ग्रसता है तो कौन बचा लेता है। इसलिए युद्ध के लिए जाते हुए किसी का मोह करना या सांसारिक सुखो की वासना मन में करना उचित नहीं। अतः किसी वस्तु में ध्यान न रखकर निश्चितता से अपना कर्म करिए। ईश्वरीय इच्छा से रण में विजय मिलेगी तो जीते हुए संसार में हम सबको सुख प्राप्त होगा। कदाचित जो युद्ध में वीरगति हुई तो पति के पिछे जो स्त्री का कर्तव्य है, उसे मैं भलिभांति समझे हुए हूँ। रणक्षेत्र में मृत्यु मिलने पर अंतकाल तक स्वर्ग में दांपत्य सुख भोगेंगे। सो हे प्राणनाथ! सहर्ष रणक्षेत्र में जाएं और विजय पाएं बिना न आएं। हम दोनों की भेंट स्वर्ग में होगी। आप अपने कुल के योग्य सुयश को रण में प्राप्त कीजिए। पीछे क्षत्राणी को अपना धर्म किस तरह पालना चाहिए, यह मुझे ज्ञात है, मै आपके पीछे अपने धर्म पालन मैं किसी बात की त्रुटि और विलंब न करूगी। इस भांति बातें होतै होते हाड़ी रानी से चूड़ावत विदा होने को ही थे कि रानी ने कहा– महाराज! विजय पाकर शीघ्र लौटना। आप अपने कुल का धर्म जानते है, इसलिए विजय कामना से युद्ध में प्रवृत्त होइए। दूसरी किसी बात में मन न रखकर रणक्षेत्र में शत्रु संहार करने में ध्यान लगाइए। जाते जाते चूड़ावत बोले— हाड़ी जी, जय पाकर पीछे लौटने की आशा नहीं है, मरना निश्चित ही है। शत्रु को पीठ दिखाकर जीवित आना भी धिक्कार है, इसलिए हमारी और तुम्हारी यह अंतिम भेंट है। तुम समझदार हो इसलिए अपनी लाज रखना। हम रण मे काम आ जाएंगे तो पीछे अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करना। हाड़ी रानी ने उत्तर दिया— महाराज! आप मेरी ओर से निश्चित रहिए। आप अपना धर्म पूरा करें, और मैं अपने धर्म को पूरा करूंगी, यह बात आप पत्थर की लकीर समझे। इस प्रकार विश्वास दिलाने पर भी चूड़ावत जी को हाड़ी रानी पर विश्वास न हुआ, और उनके मन में यही दुविधा रही कि मेरे मरने के बाद हाड़ी रानी सती होगी कि नही? चूड़ावत जी का दृढ़ विश्वास था कि यदि मैं रणभूमि में मारा जाऊं और हाड़ी रानी जी मेरे साथ सती हो जाएं तो स्वर्ग में जाकर निरंतर सुख भोगूँगा। उनके ह्रदय में यही संदेह जमा हुआ था कि संसार सुख का अनुभव न करने वाली तरूण अवस्था की हमारी रानी न जाने सती होगी या नहीं।रानी को समझा बुझाकर चूड़ावत चल दिए, परंतु सीढियों से उतरते हुए फिर रानी जी से कहा— हम तो जाते है, तुम अपना धर्म भूल न जाना। फिर जब चौक में पहुंचे और युद्ध का बिगुल बजवाकर प्रस्थान करने लगे तो अपना एक सेवक हाड़ी रानी की सेवा में भेजा, उसके द्वारा फिर कहलवाया— रानी, आप अपना धर्म न भूल जाना। तब हाड़ी रानी जी समझी और उन्हें विदित हुआ कि मेरे स्वामी का मन मेरे में लगा हुआ है। जब तक इनका चित मेरी ओर रहेगा, तब तक इनसे रण में पूर्ण काम न किया जाएगा। जिस काम के लिए जा रहे है। वह निष्फल हो जाएगा। हाड़ी रानी उस सेवक से बोली– मै तुमको अपना ससिर देती हूँ। इसे ले जाकर अपने स्वामी को देना और कहना कि हाड़ी जी पहले ही सती हुई है, और यह भेंट भेजी है, जिसे लेकर आप अब निश्चितता और आनंद के साथ रणक्षेत्र में जाइए। विजय पाइए और अपना मनोरथ सफल किजिए। किसी प्रकार की चिंता न रखिए। यह कहकर हाड़ी रानी ने तलवार से अपना सिर काट डाला। उसे लेकर वह सेवक चूड़ावत जी के पास पहुंचा। उन्हें रानी का सिर सौंपकर उनका वृत्तांत सुना दिया, यह देख और सुनकर चूड़ावत उत्सर्ग अभिभूत हो गए। भारत की वीर महिलाओं पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- [post_grid id=”6215″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां बायोग्राफीभारत की विरांगनाभारत के इतिहास की वीर नारियांसहासी नारी