सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की जीवनी – सुब्रमण्यम चंद्रशेखर नोबेल पुरस्कार विजेता Naeem Ahmad, January 27, 2019March 19, 2023 सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर एक महान खगोल वैज्ञानिक थे। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को खगोल विज्ञान के के क्षेत्र में किए गए उनके महान खोजो व कार्यों के लिए 1983 में विश्व का सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) प्रदान किया गया था। अपने इस लेख में हम भारत के इस महान वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की जीवनी, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का जीवन परिचय, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर का जन्म, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की मृत्यु, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की खोज, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की शिक्षा, सुब्रह्मण्यम चंदशेखर बायोग्राफी इन हिन्दी, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के बारें में सभी महत्वपूर्ण जानकारी के बारें में विस्तार से जानेंगे, हमारा यह लेख सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर पर निबंध लिखने के लिए भी सहायक हो सकता है। सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के बारें में (About Subrahmanyan Chandrasekhar) विज्ञान के क्षेत्र में विश्व का सर्वाधिक प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार पाने वाले सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर तीसरे भारतीय वैज्ञानिक थे। उनसे पहले विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार चंद्रशेखर वेंकटरमन (भौतिकी विज्ञान) 1930 में तथा दूसरे डॉक्टर हरगोविंद खुराना (शरीर एवं औषधि विज्ञान) 1968में यह उपलब्धि प्राप्त कर चुके है। हांलाकि नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पांचवें भारतीय थे। विज्ञान के क्षेत्र से अलग यह उपलब्धि पाने वाले गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में तथा दूसरा मदर टेरेसा जिन्हें शांति और सद्भावना के लिए 1979 मे नोबेल पुरस्कार दिया गया था। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने अपने कार्यों और उपलब्धियों द्वारा नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर भारत का झंडा विश्व में ऊंचा किया था। खगोल भौतिकी के क्षेत्र में सुब्रमण्यम की प्रसिद्धि और उनको नोबेल पुरस्कार दिए जाने का कारण है। तारों के ऊपर किए गए उनके गहन अनुसंधान कार्य और एक महत्वपूर्ण सिद्धांत जिसे चंद्रशेखर लिमिट के नाम से आज भी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की इस महान खोज ने जहां पूर्व में की गई आधी अधूरी खोजो के सिद्धांतो को सुधार कर उन्हें पुनस्र्थापित किया, वहीं भविष्य में खगोल विज्ञान के क्षेत्र में किए जाने वाले अनेक अनुसंधानों का मार्ग भी प्रशस्त किया। उनकी इसी सफलतापूर्वक खोज ने उन्हें नोबेल पुरस्कार का अधिकारी बनाया। सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (खगोलशास्त्री) सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का जन्म (Birth of Subramaniam Chandrasekhar) सुब्रमण्यम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर (अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे सुब्रमण्यम अपने 7 भाई बहनों के परिवार में सबसे बड़े पुत्र थे। उनके पिता श्री सी.एस. अय्यर ब्रिटिश सरकार के रेल विभाग में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। अत्यंत जिज्ञासु प्रवृत्ति और कुशाग्र बुद्धि के स्वामी सुब्रमण्यम की प्रतिभा के लक्षण उनकी बाल्यावस्था में ही प्रकट होने लगे थे। सुब्रमण्यम की बचपन से ही खेलों से कहीं अधिक रूचि किताबों में थी। यदि यह कहा जाए कि भविष्य में महान वैज्ञानिक बनने के गुण उनके खून में ही थे, तो गलत नहीं होगा। शिक्षित माता पिता की संतान के रूप में जन्मे सुब्रमण्यम चंद्रशेखर महान भौतिक विज्ञानी श्री चंद्रशेखर वेंकट रमन के भांजे थे। जिस समय सुब्रमण्यम का जन्म हुआ, उस समय वेंकटरमन भारत में भौतिक विज्ञान की आधारशिला रख रहे थे। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की शिक्षा (The education of Subrahmanyam Chandrasekhar) सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में ही हुई थी। सन् 1925 में जब उन्होंने प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की तो उसी साल के अंत में उनके पिता लाहौर छोड़कर मद्रास चले आएं। आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति सहित कॉलेज में अध्ययन आरम्भ किया। जैसे जैसे वे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते चले जा रहे थे, वैसे वैसे पढ़ने के प्रति उनकी रूचि भी तेजी से बढ़ती जा रही थी। उनके सहपाठी अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त और कुछ नहीं पढ़ते थे, किंतु सुब्रमण्यम नियमित रूप से पुस्तकालय जाते और भौतिक विज्ञान की जो भी नई पुस्तक मिलती, यहां तक की शोध पत्र भी पढ़ डालते थे। उन्होंने बी.एस.सी की भौतिकी विज्ञान ऑनर्स की परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त की। विदेश की ओर बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने अपने मामा वेंकटरमन से भौतिक विज्ञान की अनेक बारिकियों को जाना। और सन् 1930 मेंं सुब्रमण्यम इंग्लैंड पहुंचे, और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ( University of Cambridge ) में भौतिक विज्ञान के छात्र के रूप में अपना शोध कार्य आरंभ कर दिया। यहां उन्होंने रॉल्फ हॉवर्ड फाउलर द्वारा प्रतिपादित उन सिद्धांतों का अध्ययन किया जो सुदूर आकाश गंगा में स्थित श्वेत बौने तारों की प्रकृति पर आधारित थे। निश्चित समय पर अपना शोध कार्य पूर्ण करके सन् 1933 में उन्होंने विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.(P.H.D) की उपाधि प्राप्त की। इसी साल उन्हें कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज का फैलो चुन लिया गया। ट्रिनिटी कॉलेज ( Trinity College Of London) की फैलोशिप पाना अपने आप में एक महत्वपूर्ण सफलता थी। वे सन् 1937 तक यहां फैलो के रूप मे अपने शोध और अनुसंधान कार्यों में तन्मयता से जुटे रहे। सन् 1933 से 1937 तक 4 वर्षों का समय सुब्रमण्यम और विश्व खगोल विज्ञान के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था। इसी समयावधि में सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर ने अपनी महत्वपूर्ण खोज “चंद्रशेखर लिमिट” को विश्व विज्ञान जगत के सामने रखा। यह अलग बात है कि पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित किए गए पारंपरिक सिद्धांतों को ही सर्वोपरि मानने वाले वैज्ञानिक समुदाय ने उनकी इस खोज को स्वीकारने में अपेक्षाकृत अधिक समय ले लिया। किंतु अपनी इसी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर उन्होंने सिद्ध कर ही दिया कि वे अपनी जगह कितने सही थे। उन्नति की ओर बढ़ते गए कदम सन् 1937 मे सुब्रमण्यम ने ट्रिनिटी कॉलेज को अलविदा कह दिया और अमेरिका चले आए। वहां शिकागो विश्वविद्यालय ( University of Chicago) की यरकिस वेधशाला में सहायक अनुसंधान का पद ग्रहण किया। सन् 1938 में उन्हें खगोल भौतिकी के सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्त किए गए। सन् 1942 में उन्हे संयुक्त प्राध्यापक नियुक्त किए गए सन् 1943 में मुख्य प्राध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की अद्भुत प्रतिभा व योग्यता के आधार पर सन् 1946 में उन्हें विश्वविद्यालय का विशिष्ट प्राध्यापक नियुक्त कर दिया गया। सन् 1952 में उन्हें इंस्टीट्यूट फॉर न्यूक्लियर स्टडीज के अन्तर्गत खगोल भौतिकी विभाग के मॉरटन डी. हुल नामक विशिष्ट प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इसी साल वे प्रसिद्ध पत्रिका “एस्ट्रोफिजिकल जनरल” के प्रमुख संपादक भी बन गए। शिकागो विश्वविद्यालय और खगोल विज्ञान के संदर्भ में उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुए, सन् 1952 में उन्हें “एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ द पेसेफिक” के बूस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अगले ही साल 1953 में उन्हें रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी का स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। सन् 1957 में उन्हें अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट एंड सोसाइटी ऑफ लंदन के सर्वोच्च पुरस्कार रॉयल मेडल से सुशोभित किया गया। सन् 1965 में उन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस का सदस्य चुन लिया गया था। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर के वैज्ञानिक लेख ‘एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ स्टेलर’ स्ट्रक्चर सन् 1939 में प्रकाशित हुई। सन् 1957 में इसका पुनः संस्करण प्रकाशित हुआ। सन् 1942 में उनकी दूसरी महत्वपूर्ण कृति “प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेलर डायनेमिक्स” प्रकाशित हुई। सन् 1943 में आधुनिक भौतिकी की अवधारणाओं व समस्याओं पर आधारित लेखो को “रिव्यूज ऑन मॉडर्न फिजिक्स” नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया। सन् 1950 में “रेडिएटिव ट्रांसफर” नामक कृति प्रकाशित हुई। सन् 1961 में “हाइड्रोडायनेमिक एंड हाईड्रोमैग्नेटिक स्टेबिलिटी” नामक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई। सन् 1969 में “इलिप्संइडेल फिगर्स ऑफ इक्यूलिबेरियम” प्रकाशित हुई। नोबेल पुरस्कार सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के उपलब्धियों भरे वैज्ञानिक जीवन में इसे विडम्बना ही कहा जाएगा, कि जो खोज “चंद्रशेखर लिमिट” उन्होंने सन् 1935-1936 में ही कर ली थी, उसके लिए लगभग 47-48 सालो के बाद सन् 1983 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया, जबकि उन्हीं के दो शिष्य सन् 1957 में ही यह सम्मान प्राप्त कर चुके थे। यह अलग बात है कि बाद के सालो में किए गए उनके अन्य अनुसंधान कार्यों जैसे कि ब्लैक होल (Black hole) की उत्पत्ति और संरचना व आकाश गंगा के अन्य रहस्यों को उजागर करने के परिणामस्वरूप और अधिक समय तक इस सम्मान से वंचित रख पाना संभव नहीं रह गया था।सन् 1983 मे उन्हें नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर विश्व के समस्त वैज्ञानिक समुदाय ने प्रसन्नता प्रकट की। परिवारिक और व्यक्तिगत जीवन हांलाकि सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर 20 साल की आयु में ही अपनी मातृभूमि छोड़कर विदेश आ गए थे। जहां लगभग 7 साल इंग्लैंड (England) और बाकी का जीवन अमेरिका (America) की पश्चिमी सभ्यता संस्कृति के संपर्क में रहकर बिताया, किंतु वे कभी भी अपने देश भारत और उसकी संस्कृति को नहीं भूले। वे भारतीय रंग ढ़ंग के अनुरूप ही रहते थे। अपने घर में दक्षिण भारतीय पहनावा धोती कुर्ता पहने उन्हें अक्सर देखा जाता था। एक खगोलीय विज्ञानी होते हुए भी उन्हें संगीत में विशेष रूची थी। सन् 1936 मे चंद्रशेखर भारत आए थे। हालांकि वे बहुत थोडे समय के लिए यहां रूके। किंतु इसी समय उन्होंने अपनी जीवन संगिनी का वरण किया और उन्हें भी अपने साथ अमेरिका ले गए। सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की पत्नी श्रीमती ललिता दुरई स्वामी भी एक वैज्ञानिक थी। और भारत में महान वैज्ञानिक वेंकटरमन की विज्ञान अनुसंधान शाला में काम करती थी। विदेश में रहते हुए भी वे अपने पति की अच्छी सहयोगिनी सिद्ध हुई। सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की मृत्यु अपना महत्वपूर्ण जीवन विज्ञान को सीखने और सीखाने में अर्पित कर देने वाले महान वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने 85 वर्ष की आयु में 21 अगस्त सन् 1995 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आज सुब्रमण्यम चंद्रशेखर हमारे बीच नहीं है। किंतु वे अपने जाने से पूर्व अपने शिष्यों के रूप में भविष्य के वैज्ञानिकों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर गए है, जिसके सुपरिणाम हमें निकट भविष्य में देखने को मिल सकते है। Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens 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