सीताबाड़ी का इतिहास – सीताबाड़ी का मंदिर राजस्थान Naeem Ahmad, September 27, 2019March 18, 2024 सीताबाड़ी, किसी ने सही कहा है कि भारत की धरती के कण कण में देव बसते है ऐसा ही एक स्थान भारत के ऐतिहासिक राज्य राजस्थान के बांरा जिले की शाहबाद तहसील के केलवाड़ा गाँव के पास सीताबाड़ी नामक एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान व तीर्थ है। बडी संख्या में श्रृद्धालु और पर्यटक यहां सीताबाड़ी के मंदिर के दर्शन करने आते। बांरा से सीताबाड़ी की दूरी लगभग 44 किलोमीटर तथा कोटा से 120 और अजमेर से यह स्थान 342 किमी कि दूरी पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह स्थान लव और कुश का जन्म स्थान माना जाता है। यहां कई मंदिर व कुंड है। यह स्थान यहां लगने वाले प्रसिद्ध वार्षिक मेले के लिए भी जाना जाता है। अपने इस लेख में हम सीताबाड़ी का इतिहास जानेगें और सीताबाड़ी के दर्शन करेगें। सीताबाड़ी का इतिहास मेला व दर्शनीय स्थलकिसी भी पर्व विशेष पर अपने शीतल अन्तस्तल में सहस्त्रों श्रृद्धालुओं को भर लेने वाली सीताबाड़ी एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। इसके अति प्राचीन होने के कारण सीताबाड़ी का निर्माण किसने कराया या कैसे हुआ, इस संबंधी शिलालेख कहीं उपलब्ध नहीं है। परंतु जितने भी प्राचीन भग्नावशेष यहां है, उन्हें देखकर सीताबाड़ी के इतिहास का अंदाजा लगाया जा सकता है। भग्नावशेषो को देखकर लगता कि यह स्थल बारहवीं, तेरहवीं शताब्दी में स्थापित हुआ होगा। एक प्रचलित किवदंती के अनुसार कुछ लोगों का मानना है की इसका निर्माण किसी डाकू ने करवाया था। और एक बड़ा भू भाग इसके क्षेत्र का हिस्सा था। जो भी हो लेकिन आज श्रृद्धालुओं में इस स्थान का बहुत बडा महत्व है।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानजैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता है। सीता अर्थात भगवान श्री राम की पत्नी “माता सीता” और बाड़ी का अर्थ वाटिका या घर, मकान से है। अतः सीताबाड़ी का अर्थ हुआ सीता की वाटिका। अतः जिससे यह ज्ञात होता है कि इस स्थान पर सीता जी ने वास किया था। कहते है कि यहां वाल्मीकि ऋषि का आश्रम था। जब भगवान श्रीराम चंद्र जी ने माता सीता का त्याग किया था। तब उनके निर्वासन के दौरान देवर लक्ष्मण में ने उनकी सेवा के लिए उन्हें वाल्मीकि ऋषि आश्रम मे छोड़ा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार सीता जी के यहां वास अवधि के दौरान ही लव और कुश का जन्म भी यही हुआ था। इसलिए इसे लव कुश की नगरी भी कहा जाता है। श्रीराम चंद्र जी तथा लव और कुश के बीच युद्ध भी यही हुआ था। इसलिए इस स्थान का महत्व अधिक समझा जाता हैं। और यहां कई दर्शनीय स्थल है।गिरधारी जी का मंदिर जयपुर राजस्थानकेलवाड़ा गाँव से ही घने हरेभरे पेडों का झुड़ सा दिखाई देने लगता है। बसों, कारो, तांगों, रिक्शा आदि द्वारा वहां आसानी से पहुचा जा सकता है। यहां पहुंच कर यात्री सबसे पहले लक्ष्मण कुंड पहुचते है। लक्ष्मण कुंड लगभग 20-25 मीटर का वर्गाकार पानी से भरा कुण्ड है। इसमें साल के बारह महीने पानी रहता है। जिसके तीनों ओर तीन तिवारिया है और पूर्व की ओर आमुख लक्ष्मण जी का विशाल मंदिर है। जिसके गोल गुम्बद की प्राचीन नक्काशी बड़ी आकर्षक है। गुम्बद के अगले भाग पर दो सिंह प्रतिमाएं है। मंदिर के गर्भगृह में लक्ष्मण जी की मनुष्य के कद बराबर प्रतिमा है। यह प्रतिमा सुसज्जित वस्त्राभूषण, हाथ में तीर कमान लिए सजीव सी प्रतीत होती है। कहा जाता है कि सीता जी के अरण्य प्रवास काल में उनके स्नान के लिए लक्ष्मण जी ने ही यहां पाताल गंगा को प्रकट किया था। जिसे बभुका भी कहते है। पहले यह धारा निर्बाध रूप से अस्त व्यस्त बहा करती थी कालांतर मे स्थायी रूप से संचित रहने के लिए इस जल को कुंड का रूप दे दिया गया है। पर्व और यहां लगने वाले मेले आदि के अवसरों पर हजारों श्रृद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते है। और कुंड का पानी पीते है। लोगों का मानना है कि लक्ष्मण कुंड का पानी पीने से रोगों से छुटकारा मिलता है। इस कुंड पर नहाना और कपड़े आदि धोना निषेध है।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानसीताबाड़ी को कुंडो की वाटिका भी कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। छोटे बडें यहां कुल मिलाकर सात कुंड है। जिनमें से तीन कुंड ही प्रधान कुडं है। पहला सीता कुंड, दूसरा सूरज कुंड और तीसरा लक्ष्मण कुंड, इसके अलावा राम कुंड, लव कुश कुंड, वाल्मीकि कुंड आदि भी महत्व के है।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानसूरज कुंड यहां का सर्वोत्तम मनोहारी स्वच्छ जल से भरा हुआ 2-3 क्षेत्र का संगमरमरी धरातल वाला कांच के चकौर कटोरे सा सूरज कुंड है। जिसमें एक साथ 15-20 स्नानर्थियों का समूह एक में ऊतर जाता है। उनके बाहर आते ही फिर दूसरा फिर तीसरा समूह यही क्रम चलता रहता है। कार्तिक पूर्णिमा के पर्व पर इस कुंड के पानी की निर्मलता में कोई अंतर नहीं आता। इस कुंड के पानी से किसी काल में कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाया करते थे। इस कुंड के चारों ओर द्विवारियां है और एक द्विवारी में शिव प्रतिमा स्थापित है। कुछ लोगों का कहना है कि यहां बारह महीने एक जीवित सर्प चक्कर लगाया करता है। मगर वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचता।सीताबाड़ी के सुंदर दृश्यपौराणिक महत्व के संदर्भ में पता नहीं वस्तु सत्य क्या है। लेकिन लोग अभी तक भी इस स्थल को वाल्मीकि आश्रम के नाम से सिर झुकाते है। जहाँ पर अग्नि परिक्षा के उपरांत भी महासती सीता को एक बार पुनः परित्याग का कष्ट वहन करने के निमित्त आना पड़ा था। सीता की सब प्रकार की सुख सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए लक्ष्मण, अरण्य वासी, वाल्मीकि ऋषि आदि ने सहयोग कर छांव, पानी आदि की सभी व्यवस्थाएं यहां कर दी थी। यही पर लव कुश का जन्म हुआ और उनको शास्त्र ज्ञान एवं शस्त्र विद्या दी गई थी।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं रामचरित के उसी मूल भाग को लेकर हजारों यात्री कार्तिक पूर्णिमा पर यहां स्नान करने आते है। चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण पर तो यहां मेला सा लग जाता है। कई लोग सीता माता और लक्ष्मण जी की मनौती मानकर अपने बच्चों के मुंडन और यज्ञोपवीत आदि संस्कार तक यही पूर्ण कराते है। वैसाख वदी तृतीया से पूर्णमासी तक सीताबाड़ी मे पशुओं का एक विशाल मेला भी लगता है। मेले के समय में यहां की छटा विशेष रूप से दर्शनीय होती है। यह मेला व स्थान आदिवासी सहरिया जनजाति तीर्थ स्थान व मेला आदिवासियों का महाकुंभ के नाम से भी जाना जाता हैधनोप माता मंदिर भीलवाड़ा राजस्थान – धनोप का इतिहासयहां से लगभग 5 किलोमीटर उत्तर मे बिल्कुल निर्जन और बंजर धरती मे एक स्थल पर ठंडे पानी की धारा झरने के दृश्य समान जमीन के भीतर से मीटर भर ऊंची उछाल के साथ गिरती है। इसे बांण गंगा कहते है। सीताजी को प्यास लगने पर लक्ष्मण जी ने धरती पर बांण मारकर यही गंगा का आह्वान किया था। इसका पानी धीरे धीरे होकर सीधा सीताबाड़ी की ओर आमुख हो सारण में मिल जाता है। यह सारण (झरनी) कभी नहीं सुखती है। और अब तो इसके पानी से 5-6 हजार बीसा जमीन में सिचांई भी की जाती है।कैला देवी मंदिर करौली राजस्थान – कैला देवी का इतिहासपर्णकुटी (सीता कुटी) यह सूरज कुंड से पूर्व दिशा की ओर एक किलोमीटर की दूरी पर एक कुटिया है। जो संपूर्ण वृक्षों की सूखी टहनियों से निर्मित है एवं पत्तों से आच्छादित है। टहनियों की गुंथावट इस प्रकार मजबूत है। जो न हवा से हिलती है और न ही आंधी से गिरती है। कुटिया के आंतरिम कक्ष में एक चकौर पत्थर के टुकड़े पर दो छोटे छोटे पद चिन्ह है। जिन्हें सीता के चरण के चरण मानकर पूजा जाता है।गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहासयहां एक और मुख्य दर्शनीय स्थल है हांके का थम्भ सीताबाड़ी से तीन किमी की दूरी पर दक्षिण पूर्व में घना जंगल है। इतना घना की बारह महीने सूर्य की किरण भूतल को नहीं छू सके। यही पर शिकार का हांका लगाया जाता था। राजा के राज्य में केवल कोटा नरेश को ही इस जंगल में शिकार करने का अधिकार था। यह अधिकार अब राज्य सरकार के हाथ में है। इस जंगल मे शेर, चीते, भालू, बारहसिंगा सभु पशु विचरण करते है।हर्षनाथ मंदिर सीकर राजस्थान – जीणमाता मंदिर सीकर राजस्थानअध्धयन के आधार पर इस क्षेत्र की सीमा मध्यप्रदेश से अधीक समीप लगती है। पगडंडियों के छोटे मार्ग से चलने पर लगभग बारह किलोमीटर की दूरी पर ही मध्यप्रदेश के छोटे नगर गुना पहुंचा जा सकता है। और ये ही पगडंडियां आगे चलकर दण्डकारण्य वन में जा मिलती है। जहाँ वास्तव में लक्ष्मण जी (रामचरितमानस के आधार पर) सीता को परित्यक्त स्थिति में छोड़ गए थे।रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दीजहाँ एक ओर सीताबाड़ी मई जून की तपती दोपहरियो में अपनी प्राकृतिक शीतलता के लिए प्रसिद्ध है। वही पर कुछ ऐसे अप्रतिम चमत्कार भी रखती है। जिसके कारण इसका वैभव झुठलाया नहीं जा सकता। यह सम्मपूर्ण दो किलोमीटर के क्षेत्र से घिरी वाटिका यदि आम वाटिका कही जाएं तो न्याय संगत ही होगा। क्योंकि यहां सत प्रतिशत वृक्ष आम के ही है। और संभवतः सम्पूर्ण भारत में यह एक मात्र ऐसा स्थल होगा, जहाँ पर आम जैसा मीठा फल निशुल्क खाने को मिलता है। वहां पर न तो कोई आम विक्रेता है और न खरीदार सब अपनी इच्छा से जैसा और जितना चाहे आम खा सकता है। मगर हां ध्यान रहे यह आम गठरी बांध कर घर नहीं ले जाया जा सकता। यदी कोई चोरी छीपे से ले भु गया तो सीताबाड़ी की सीमा लांघते ही एक दो घंटे में वे सभी आम सड़ जाते है। कुल मिलाकर सीताबाडी एक प्राकृतिक दर्शनीय तीर्थ स्थल है। जो अपनी धार्मिकता, नैतिकता, चमत्कार आदि कारणों से आज भी लाखों पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते हैप्रिय पाठकों यदि आपके आसपास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन महत्व का स्थान है और आप उसके बारे मे पर्यटकों को बताना चाहते है तो आप हमारे submit a post संस्करण मे जाकर अपना लेख कम से कम 300 शब्दों में लिख सकते है। हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को आपकी पहचान के साथ अपने इस प्लेटफार्म पर शामिल करेंगे। राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:–[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के 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