यूं तो देश के विभिन्न हिस्सों में जैन धर्मावलंबियों के अनगिनत तीर्थ स्थल है। लेकिन आधुनिक युग के अनुकूल जो महत्व श्री महावीरजी तीर्थ तीर्थ स्थल का है। वह अपने आप मे अनूठी तथा मानवीय समता का संदेश देने वाला है। इस स्थान को तीर्थ कहा जाता है। जो किसी विशेषता से कम नहीं है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार तीर्थ उसी स्थान को माना जाता है, जहां तीर्थंकर का जन्म, तप या निर्वाण हुआ हो। श्री महावीरजी टेम्पल में ऐसा कुछ भी नही हुआ, लेकिन उसका महत्व किसी तीर्थ से कम नहीं है। श्री महावीर जी राजस्थान के करौली जिले में पश्चिम रेलवे की गंगापुर तथा बयाना रेल लाइन के मध्य श्री महावीर जी स्टेशन है। आने जाने का मार्ग सुविधाजनक है। और प्रतिवर्ष महावीर जयंती के अवसर पर श्री महावीरजी का मेला भरता है। जिसे लक्खी मेला भी कहते है। उस समय यात्रियों की सुविधा के लिए यहां यातायात की विशेष व्यवस्था की जाती है।
श्री महावीरजी का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ महावीर जी
श्री महावीर जी स्थान का नाम लगभग चार सौ साल पहले चांदन था। बाद में जब यहां से भगवान महावीर जी की प्रतिमा प्राप्त हुई तो इसका नामकरण भी श्री महावीर जी हो गया। आज इस स्थान को चांदन गाँव के नाम से कोई नहीं जानता। वह नाम इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया। आज श्री महावीर जी के नाम से ही यह स्थान प्रसिद्ध है।
श्रीमहावीर जी धाम राजस्थान के सुंदर दृश्य
यद्यपि इस स्थान के संबंध में ऐतिहासिक तौर पर पूर्ण जानकारी विस्तार से उपलब्ध नहीं है। लेकिन जो कुछ सामग्री उपलब्ध है। उसके आधार पर यह कहा जा सकता है। सोलहवीं शताब्दी में यहां स्थापित प्रतिमा एक टीले से प्राप्त हुई थी। जिसके कारण इसे टीले वाले बाबा के रूप में भी भक्तों में जाना जाता है। यह प्रतिमा आज जन जन की निष्ठा और आकर्षण का केंद्र है।
श्री महावीर जी की कथा – श्री महावीर जी की कहानी
कहते है कि एक चर्मकार की गाय नित्य इस टीले पर चरने के लिए जाया करती थी। वह दिनभर वहां चरती लेकिन संध्या के समय जब वापस लौटती तब उसके थनों में दूध नहीं मिलता था। चर्मकार को संदेह हुआ, उसने विचार किया की संभवतः कोई चोर गाय के थनों में से दूध निकाल लेता है। तलाश के लिए एक दिन वह गाय के पीछे पीछे गया। लेकिन यह देखकर वह आश्चर्य में डूब गया कि एक विशिष्ट स्थान पर गाय जाकर ठहर जाती है। और उसके थनों से स्वयं ही दूध निकलने लगता है।
श्रीमहावीर जी धाम राजस्थान के सुंदर दृश्य
तत्काल उस स्थान पर खुदाई की गई। और वहां भगवान महावीर की लाल पाषाण की मनोहर प्रतिमा मिली। इस घटना का समाचार तुरंत ही जंगल में आग की तरह चारों ओर फैल गया। दर्शनाभिलाषी व्यक्ति वहां पहुंचने लगे जिनमें जैन धर्म के अनुयायी भी थे। उन्होंने इस प्रतिमा को अपने यहां ले जाना चाहा, लेकिन एक चमत्कार के बाद दूसरा चमत्कार हुआ। किवदंती के अनुसार प्रतिमा अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई। आखिरकार उसी टीले पर एक चबुतरा बनाकर प्रतिमा स्थापित कर दी गई। बाद मे एक जैन श्रावक अमरचंद विलाला ने वर्तमान महावीर जी मंदिर का निर्माण कराया और बंदी प्रतिष्ठा के समारोहिक आयोजन के साथ प्रतिमा को प्रतिष्ठित कर दिया गया।
यह सब हो चुका लेकिन उस व्यक्ति की यादगार अभी तक कायम है। जिसकी सूचना पर प्रतिमा का पता चला था। जिस चर्मकार ने सूचना दी थी, उसके वंशजों को आज भी रथ के पहिए को छूने का अथवा समारोह के आयोजन का एक प्रकार से श्रीगणेश करने का गौरव प्राप्त है। प्रतिवर्ष मेलों के अवसर पर जब रथ यात्रा का शुभारंभ होता है। तब उस समय तक रथ को आगे नहीं बढाया जा सकता है। जब तक कि चर्मकार उसे छू न ले। परम्परा का यह एक अनिवार्य भाग है।
श्रीमहावीर जी धाम राजस्थान के सुंदर दृश्य
मंदिर मुगल तथा हिन्दू स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। श्री महावीरजी मंदिर के सामने के हिस्से में स्तूपकार छतरियां है। और पार्श्व भाग में 50 फीट ऊचें तीन शिखर है। शिखर पर स्वर्ण कलश है। मंदिर के आन्तरिक भाग में स्वर्ण तैलचित्र है। बाएं भाग में भित्तिचित्र है। मंदिर करौली के पत्थर से निर्मित हुआ है। लेकिन का भाग अब संगमरमर का बनवा दिया गया है।
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण गम्भीर नदी के तट पर अवस्थित यह विशाल मंदिर न केवल जैन अपितु अन्य समुदाय के लिए भी आस्था का केंद्र है। अन्य समुदाय मे इसे टीले वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है। आसपास तथा दूर दूर से जैन धर्मावलंबियों एवम अन्य समुदाय के यात्री यहां दर्शनों के लिए आते है, और शीश नवाते है, और मनवांछित फल की याचना करते है।
श्रीमहावीर जी धाम राजस्थान के सुंदर दृश्य
श्री महावीर जी का मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तेरस से वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तक भरता है। मेले में मीणा, गूजर तथा अहीर आदि जातियों के यात्री भी आते है। परम्परागत वाद्ययंत्रों के साथ नाचते गाते उल्लासित एवं आनंदित महिला पुरूषों की जब लोक लहरी गूंजती है, तो वह ह्रदय को छू लेती है। सीधे सीधे शब्दों में इन लोकगीतों मे लगता है कि विश्व का सम्पूर्ण एवम आध्यात्मिकता समा गई है। मेला चार दिन तक चलता है। और समारोह का श्रीगणेश ध्वजारोहण के साथ होता है। प्रतिदिन भजन, पूजन तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते है। संध्या के समय मंदिर का दृश्य दीपमालिका जैसा लगता है। वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को रथ यात्रा तथा कलशाभिषेक के साथ इस कार्यक्रम का समापन होता है।
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने स्वयं जीओ औ दूसरो को जीने दो का जो महान संदेश दिया था। वह इस तीर्थ स्थल में प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। भगवान महावीर ने जन साधारण को अहिंसक तथा सहिष्ण बन कर स्वयं के विकास का संदेश दिया था। सर्व धर्म समभाव सह-अस्तित्व तथा अहिंसा के उनके आदर्श एवम प्ररेणादायक संदेशों की महत्ता को राष्ट्र आज भी स्वीकार करता है।
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