रानी पद्मावती की जीवनी – रानी पद्मिनी की कहानी Naeem Ahmad, July 11, 2018March 30, 2024 महाराणा लक्ष्मण सिंह अपने पिता की गद्दी पर सन् 1275 मैं बैठे। महाराणा के नाबालिग होने के कारण, राज्य का सारा कारोबार उनके काका भीमसिंह जी चलाते थे। भीमसिंह का विवाह चौहान राजा हमीरसिंह की पुत्री पद्मिनी से हुआ था। जो अत्यंत रूपवती थी। रानी पद्मावती का रूप राजपूताना की दुर्दशा का कारण बना। उनके रूप की प्रशंसा सारे देश मैं फैल गई थी।उस समय दिल्ली की गद्दी पर अत्याचारी अलाउद्दीन खिलजी राज करता था। उसने रानी पद्मावती के रूप की प्रशंसा सुनकर उन्हें प्राप्त करने की मन में ठान ली। इसलिए उसने मेवाड पर चढाई करके चित्तौड़ को घेर लिया। और अपने दूत द्वारा चित्तौड़ संदेश भेजा की हम पद्मिनी को साथ लिए बिना दिल्ली वापस नही जाएंगे।रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दीपरंतु राजपूतों की बहादुरी के सामने उसकी सेना ठहर न सकी। और वह वहां से निराश होकर खाली हाथ दिल्ली वापस चल पडा। परंतु रानी पद्मावती के रूप का जादू उसे चैन से नही बैठने दे रहा था। उसने निश्चय कर लिया कि बिना पद्मिनी को लिए चित्तौड़ से नही लौटूँगा।उसने दौबारा फिर चित्तौड़ को चारों ओर से घेर लिया। और राणा को संदेश भेजा कि हम रानी पद्मावती को लिए बिना कदापि नहीं जाएंगे। रानी पद्मावती की कहानीजो राजपूत अपनी प्रतिष्ठा रखने के लिए केसरिया वस्त्र पहनकर जौहर करते थे। और अपने मरने से पहले अपनी स्त्रियों को चिता बनाकर आग मे जला देते थे। वे वीर राजपूत अपनी परम सुंदरी रानी को मुसलमानों को इस तरह दे दे, यह कैसे हो सकता था? ।अंत मे रानी पद्मिनी का मुख केवल शीशे मे से देखकर लौट जाना अलाउद्दीन खिलजी ने अंगीकार कर लिया, भीमसिंह ने भी अपने वीर पुरुषों के प्राण बचाने के लिए यह बात स्वीकार कर ली।अल्लाउद्दीन को राजपूतों के वचन पर विश्वास था। इसलिए थोडे से सैनिको के साथ उसने चित्तौड़ दुर्ग मे प्रवेश किया और जैसा तय हुआ था, उसी के अनुसार रानी पद्मावती का मुख शीशे मे दिखला देने से उसने राजपूतों को धन्यवाद दिया।रानी प्रभावती एक सती स्त्री की वीरता, सूझबूझ की अनोखी कहानीपरंतु अलाउद्दीन खिलजी मुंह से कहता कुछ था और मन मे विचार कुछ और रखता था। उसने जबसे पद्मिनी का मुख शीशे में देखा तभी से पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए उसकी व्याकुलता और भी बढ गई।भीमसिंह और थोडे से राजपूत योद्धा अलाउद्दीन के साथ बाते करते हुए गढ़ से नीचे उतर आए, परंतु बादशाह के मन मे पाप था, बातों ही बातोमे वह राजपूतों को अपने शिविर तक ले गया, और अवसर पाकर उसने भीमसिंह को कैद कर लिया। और किले मे कहलवा भेजा कि पद्मिनी को लिए बिना भीमसिंह को नही छोडूंगा।भोले और विश्वासी स्वभाव के राजपूतों ने सम्मुख खडे हुए कपटी शत्रुओं को सरल ह्रदय का समझा, जिससे उनका यह अनिष्ट हुआ। इस शौक समाचार के सुनते ही चित्तौड़गढ़ मे घबराहट फैल गई। अब क्या करना चाहिए, उन्हें उस समय कुछ भी नही सूझ रहा था।अंत मे यह सब बाते रानी पद्मावती को भी मालूम हुई। तब उन्होने गोरा और बादल को बुलाकर पूछा कि क्या उपाय किया जाए। जिससे स्वामी बंधन मुक्त हो जाए, और मेरी प्रतिष्ठा पर भी बट्टा न लगे। उन्होनें ऐसी युक्ति सुझाई, जिससे पद्मिनी को अपनी प्रतिष्ठा और प्राण न गवाने पडे।रानी जवाहर बाई की बहादुरी जिसने बहादुरशाह की सेना से लोहा लियाउन्होंने अपनी योजना के चलते अलाउद्दीन खिलजी को संदेश भिजवा दिया कि, हम अपने राज्य के संरक्षक को बचाने के लिए पद्मिनी को देने के लिए तैयार है। रानी पद्मिनी भी दिल्ली के बादशाह के महलो मे जाने को तैयार है। परंतु रानी पद्मावती की प्रतिष्ठा और राजपूतों की रीति रिवाज व व्यवहार न बिगड़ने देने के लिए आपको कुछ नियम स्वीकार करने पडेंगे। प्रथम तो तुम यहां से घेरा उठाओ तभी हम पद्मिनी को भेजेंगे। फिर पद्मिनी के साथ कुछ दासियाँ छावनी तक उन्हें विदा करने के लिए आएंगी। और कितनी ही उनकी निजी दासियाँ है, जो दिल्ली तक ही उनके साथ जाना चाहती है। इससे उनको आने की आज्ञा मिलनी चाहिये, और उनकी मान प्रतिष्ठा भी भंग नहीं होनी चाहिए। राजपूतों के यहां नियम है कि स्त्रियां किसी को मुख नही दिखाती, इसका पालन तुम्हारे यहां भी होना चाहिये। पद्मिनी जैसी रूपवती स्त्री का मुख देखने को तुम्हारे सरदार लोग बडे आतुर होगे। इससे वे उनका मुख देखना चाहेंगे। सो उनका तो क्या उनकी दासियों तक का मुख देखने की आज्ञा किसी को नही होनी चाहिए। अगर यह सब तुम्हें स्वीकार हो तो तुम घेरा उठाने की आज्ञा देकर हमे बताना, हम पद्मिनी को उनकी दासियों के साथ तुम्हारे शिविर में भेज देगें।रानी पद्मावती जौहर का काल्पनिक चित्रपद्मिनी पर मोहित अलाउद्दीन खिलजी को ऐसे मामूली नियम स्वीकार करने मे क्या आपत्ति हो सकती थी, उसने तो पद्मिनी चाहिए थी, चाहे कैसी भी कठिन शर्तें क्यों न होती, वह स्वीकार कर लेता। अलाउद्दीन खिलजी जैसे छली-कपटी मनुष्य के साथ जैसा होना चाहिए था, वैसा ही गोरा और बादल ने किया।अलाउद्दीन ने सभी शर्तें स्वीकार कर घेरा उठाने की आज्ञा दे दी। इतने मे चित्तौड़गढ़ दुर्ग से एक के पिछे एक इस प्रकार सात सौ पालकियां निकली। उनमें प्रत्येक मे एक एक वीर, रणबांकुरा सशस्त्र राजपूत था, और उन पालकियों को उठाने के लिए छः छः वीर सशस्त्र राजपूत पालकी उठाने वालो के वेष मे थे।वे सब बादशाही शिविर के पास आए, और एक बडे तंबू के भीतर, जिसके चारों ओर कनातें लगी थी, सब पालकियां उतारी गई। अलाउद्दीन खिलजी ने भीमसिंह को आधा घंटे के लिए रानी पद्मिनी से अंतिम भेट कर लेने की इजाजत दे दी। भीमसिंह तंबू मे आए तो उनको एक पालकी मे बिठाया गया और उनके साथ कुछ पालकियां पीछे चली। मार्ग मे एक शीघ्रगामी घोडा तैयार करके रखा गया था, जिसके ऊपर चढकर भीमसिंह चित्तौड़गढ़ मे सफलतापूर्वक जा पहुंचे।हाड़ी रानी का जीवन परिचय – हाड़ी रानी हिस्ट्री इन हिन्दीइधर बादशाह मन ही मन बडा प्रसन्न था, कि ऐसी अद्वितीय सुंदरी मुझे मिल गई, और वह कामातुर होकर प्रतिक्षा कर रहा था कि कब आधा घंटा बीते और कब उस अप्सरातुल्य पद्मिनी से भेंट हो। भीमसिंह को वापस चित्तौड़ लौटाने का विचार अलाउद्दीन का था ही नहीं।इसके साथ ही भीमसिंह बहुत देर तक पद्मिनी के साथ बाते करे, यह भी उसे अच्छा नहीं लगा। काफी इंतज़ार के बाद अलाउद्दीन तंबू मे आया, परंतु वहा भीमसिंह व पद्मिनी दोनो मे से कोई भी न मिले। पालकियों मे से एक के पीछे एक वीर क्षत्रिय निकल पडे।अलाउद्दीन भी कच्चा न था, उसके यवन सैनिक उसकी रक्षा के लिए तैयार थे। राजपूतों ने कपट किया, यह देख उसने तुरंत ही भीमसिंह के पिछे अपने सैनिक भेजे। परंतु बादशाही छावनी मे आए हुए राजपूतों ने उनका रास्ता रोक लिया, एक एक राजपूत योद्धा मरते दम तक वीरता से लडा, परंतु विशाल सेना के आगे क्या बस चल सकता था।मुसलमानों ने चित्तौडग़ढ़ के पहले द्वार के आगे राजपूतों को पकड लिया, परंतु भीमसिंह तो उससे पहले ही ठिकाने पर पहुंच चुके थे। द्वार के आगे जो राजपूत थे, उनके नायक गोरा और बादल थे। उन्होंने मुसलमानों को ऐसा त्रास दिया की अलाउद्दीन खिलजी को अपनी इच्छा के पूर्ण होने मे भी शंका हो गई, और थोडी देर के लिए तो अपने ध्यान मे से पद्मिनी को दूर करना पडा।भीमसिंह को छुडाने मे बहुत से सिसौदिया शूरवीर मारे गए, और बादल घायल हुआ तथा गोरा मारा गया। बादल की आयु उस समय केवल बारह वर्ष की थी, परंतु उसने अपनी वीरता से लोगों को चकित कर दिया।रानी कर्णावती की जीवनी – रानी कर्मवती की कहानीजब बादल घर गया तो गोरा की स्त्री ( बादल की काकी) ने उससे पूछा– “बादल” तेरे काका ने कैसी लडाई की? यह मुझे बता ताकि मरने से पहले मेरा मन शांति पाए। बादल बोला– “काकी” अपने काका की वीरता का वर्णन करने के लिए तथा अपने घाव दिखाने को एक भी शत्रु जीवित नही छोडा।यह सुनकर वह अति प्रसन्न हुई और बोली– “बस” मुझे इतना ही सुनना था। अब जो मेरे जाने मे देर होगी तो स्वामी अप्रसन्न होगें। इतना कहकर वह स्वामी की जलती हुई चिता मे कूदकर सती हो गई।गोरा की स्त्री ने बादल से जिस समय अपने पति की वीरता का हाल सुना तो उसे अपने पति की मृत्यु का शोक न हुआ, बल्कि आनंद से उसका मन प्रफुल्लित हो उठा और शांतिपूर्वक पति की चिता मे प्रवेश करके उसकी सहगामिनी हुई।इस पर “मेवाडनी जाहोजलाली” का लेखक लिखता है– शूर सतियो, तुम्हारा जितना बखान किया जाए सब थोडा है। ऐसे दृष्टांतों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि उस समय की वीर राजपूतनियो का अपने पतियों के साथ कैसा प्रगाढ़ प्रेम था। यूनान देश की स्पार्टन जाति की स्त्रियां तथा काथेंज (मिस्त्र) देश की फिनशियन जाति की स्त्रियां भी इनके आगे किसी गणना मे नही थी, इस कथन मे कुछ अतिश्योक्ति नही। हमारे यह लेख भी जरूर पढेंचित्तौड़गढ़ का किलाकुम्भलगढ़ का इतिहासझांसी की रानी की जीवनीरानी भवानी की जीवनी अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ से पहली बार पीछे तो हट गया, परंतु उसके ह्रदय मे पद्मिनी को पाने की इच्छा बलवती हो उठी थी, इसलिए सन् 1296 मे अपना दल इकट्ठा करके उसने पुनः चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।पहले युद्ध मे राजपूतों के बडे बडे शूरवीर मारे गए थे। वे अपनी कमी पूरी कर लेते, इतना समय भी अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें नहीं दिया। लेकिन फिर भी राजपूत लोग जितनी सेना इकट्ठी कर सके, उतनी सेना लेकर मुसलमानों से भिडने को तैयार हुए।चारण रामनाथ रत्न ने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि– सिसौदियो ने गढ़ मे बैठकर लडाई की, यह उनकी बडी भूल हुई और इनसे पीछे महाराणा प्रतापसिंह तक से यह भूल होती गई, जिससे मुसलमान बादशाहों को प्रायः विजय पाने का अवसर मिला। क्योंकि गढ़ मे बैठकर लडने से राजपूत लोग घिर जाते थे, देश शत्रुओं के हस्तगत हो जाता था। प्रजा को शत्रुओं से बचाने वाला कोई नही रहता था। शत्रुओं को सब प्रकार से सुख रहता था। उन्हें केवल इतनी ही सावधानी रखनी पडती थी कि गढ़ मे बाहर से अन्न व जल न पहुचने पाएं, जिससे कि गढ़ के भीतर के अन्न व जल के समाप्त हो जाने पर दो तीन दिन भूखो रहकर विवश क्षत्रियों को बाहर निकलकर लडना पडे।रानी चेन्नमा की कहानी – कित्तूर की रानी चेन्नमाउस समय शत्रु तो सब प्रकार सजे हुए होते थे, और क्षत्रिय दो दो तीन तीन दिन के भूखे। इसलिए यद्यपि वे लोग वीरता से लडते तो भी अंत प्रायः सब के सब मारे जाते। वे बचते भी तो आपस मे कट मरते, क्योंकि ऐसे अवसरो पर युद्ध के लिये निकलने से पहले वे अपनी स्त्रियों को जलाकर मार डालते थे। इसके बाद ही वे युद्ध के लिए निकते थे। युद्ध समाप्त होने के बाद उन्हें इस संसार मे रहना किसी प्रकार स्वीकार न होता था। इसी कारण राजस्थान के सब राजा दिल्ली के बादशाहों से पराजित हुए।महाराणा प्रताप सिंह ने इस प्रकार की लडाई की नीति को छोडा, जिसका फल यह हुआ कि अकबर जैसा प्रबल बादशाह भी उनको वश मे न कर सका।छः मास तक असीम साहस और वीरता से राजपूत लडे, परंतु राणाजी को यकीन हो गया था कि अब चित्तौड़ के साथ साथ सिसौदियो का भी नाश होने वाला है। उनके बारह पुपुत्र थे, उनमें से कोई एक तो बचा रहे, जो कि तुर्कों से बैर लेता रहे, इस विचार से उन्होंने अपना एक प्यारा पुत्र अजयसिंह मेवाड के पहाड़ों मे भेजदिया और शेष ग्यारह पुत्रो को लेकर लडने के लिए तैयार हुए। वह और उनके ग्यारह पुत्र वीरतापूर्वक लडते हुए मारे गए। बहुत से मुसलमान भी मारे गए।परंतु किले मे घिरे हुए राजपूतों की संख्या इतनी घट गई थी कि अंत मे उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए केसरिया बाना पहनने के अलावा कोई और दूसरा उपाय दिखाई नहीं दिया।रानी भवानी की जीवनी – रानी भवानी का जीवन परिचयऐसा करने से पहले राजपूतनियो को क्या करना चाहिए, यह विचार करना शेष रहा। जिनके लिए चित्तौड़ वालो ने यह आपत्ति अपने सिर पर ली थी, उस रानी पद्मावती तथा दूसरी राजपूत स्त्रियों की प्रतिष्ठा बनी रहे। यह उपाय सबसे पहले करना चाहिए।राजपूतों ने केसरिया वस्त्र धारण करने का विचार अपनी स्त्रियों को बताया तो वह भी अपने पतियों के साथ प्राणांत करने को तैयार हुई। पति के पिछे सती होने का उनका विचार तो था ही, तो क्या शरीरांत करने की भागिनी होकर वे पिछे हटने वाली थी। उन्होने कहा– हम भी तुम्हारे साथ केसरिया वस्त्र पहनकर शस्त्र बआंधकर लडेगी और शत्रुओं का नाश करने मे तुम्हारी सहयोगी बनेगी। तुम्हारे मरने से पहले शत्रुओं को मारते मारते मरना हमें अच्छा जान पडता है। मुसलमानों को हमारे हाथ का भी स्वाद चखने दो, ताकि वे भी जान लेकि ऐसी स्त्रियों की कोख मे जन्म लेने वाले पुरूष कदापि सिर झुकाने वाले नही है। और इससे वे फिर कभी चित्तौड़ पर आक्रमण करने का साहस न करेगें। परंतु राजपूतनियो की यह बात राजपूतों को उचित न लगी। यदि स्त्रियां लडने जाए और दैवयोग से एक भी जीवित स्त्री मुसलमानों के द्वारा, कदाचित रानी पद्मावती ही पकडी जाएं तो उनकी इच्छा पूर्ण हो जाएगी। इसलिए ऐसा करना कदापि उचित नही।उनके प्राणांत का अन्य मार्ग क्या था? । जिन तलवारो से शत्रुओं के गले काटे जाते थे, वे तलवारे अपनी प्राण प्रियाओ के ऊपर किस प्रकार उठाई जा सकती थी?। अंत मे वे स्त्रियाँ एक चिता मे प्रवेश करके उसमे अग्नि लगाकर जलकर मरने को तैयार हुई।राजपूतों को भी जौहर करने का यह विचार अच्छा लगा। फिर क्या था एक बडे घर मे चिता बनाई गई, जब रानी पद्मावती सहित सब क्षत्राणियां उस पर बैठ गई, तो उसमे आग लगा दी गई जिससे वे घर सहित भस्म हो गई। और रानी पद्मावती सहित सभी क्षत्राणियों का यह जौहर चित्तौड के इतिहास मे अमर हो गया।झांसी की रानी का जीवन परिचय – रानी लक्ष्मीबाई की गाथाआग लगते ही उसका धुआं आकाश मे पहुंचा और उस चिता का प्रकाश अलाउद्दीन की छावनी मे भी पहुंचा। अब राजपूतों ने केसरिया वस्त्र पहनकर, नंगी तलवारें हाथो मे ले, सिंह की सी गर्जना कर द्वार खुला छोड “एकलिंगजी की जय” बोलते हुए मुसलमानों पर धावा बोल दिया। और अलौकिक वीरता दिखाते हुए उनमें से प्रत्येक मारा गया।भीमसिंह भी वीरतापूर्वक लड़कर मुसलमानों के हाथों मारे गए। अब चित्तौड़गढ़ मे घुसने के लिए मुसलमानों को कुछ रूकावट न रही, वे सुगमता से घुस गए। परंतु जिनके लिए अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सहस्त्रों मनुष्यों के प्राण खोए थे, और सहस्त्रों राजपूतों के प्राण लिए थे। उस रानी पद्मावती को प्राप्त करके जब उसने अपने ह्रदय को शीतल करना चाहा, तब वह अग्नि मे जलकर भस्म हो चुकी थी।इससे अलाउद्दीन के शोक और निराशा की सीमा न रही। उसे वैर लेने को जब चित्तौड़गढ़ मे कोई प्राणी नही दिखाई दिया, तो उसने क्रोध वश चित्तौड़ के महल और देव मंदिर तुडवा डाले और इस तरह से वहा की प्राचीन कारीगरी के चिन्हों का नाश किया। अंत मे जब निर्जीव पदार्थ भी उसे नाश करने को न मिला, तब वह पापी चित्तौड़ के खंडहरों का राज्य अपने एक अधिकारी को सौंपकर, अपने हाथ मलता हुआ दिल्ली चला गया। रानी पद्मावती का पवित्र जीवन आज भी स्त्रियों के लिए अब तक एक उत्तम आदर्श बना हुआ है।हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=”6215″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां जीवनीसहासी नारी