कुवंर दिग्विजय सिंह की जीवनी — हॉकी के महान खिलाड़ी दिग्विजय सिंह Naeem Ahmad, March 29, 2020March 28, 2024 कुवंर दिग्विजय सिंह कौन थे? जी हां हॉकी खेल जगत में बाबू के नाम से प्रसिद्ध होने वाले खिलाडी कुवंर दिग्विजय सिंह एक महान खिलाड़ी थे। कुवंर दिग्विजय सिंह का जन्म 2 फरवरी 1922 को बाराबंकी उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका सारा परिवार ही खेल प्रेमी था। पिता स्वर्गीय श्री रायबहादुर रघुनाथ सिंह टेनिस के शौकीन थे। उनके बड़े भाई सुखदेव सिंह मोहन और कुवंर नरेश सिंह राजा भी खेलकूद में रूची रखते थे। ऐसे वातावरण में पढ़ाई के साथ साथ बाबू का खेलकूद में रूची रखना स्वाभाविक था।भारतीय हॉकी में ड्रिबलिंग और गजब की सूझबूझ के कारण बाबू समकालीन हॉकी के सर्वकालिक बादशाह थे, असल में मेजर ध्यानचंद युग के बाद बेहतरीन राइट इन होने के कारण बाबू हॉकी में एक मशहूर नाम है। लखनऊ के कान्यकुब्ज कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद बाबू 1938 में दिल्ली खेलने आ गए। किशोरावस्था में ही उन्होंने उत्तर प्रदेश से खेलना शुरू कर दिया था, और बीस साल 1939-59 तक राज्य का प्रतिनिधित्व किया। राष्ट्रीय टीम में कुवंर दिग्विजय सिंह ने 1946-47 में स्थान बना लिया था। कुवंर दिग्विजय सिंह का जीवन परिचय1949 के लंदन ओलंपिक में कुवंर दिग्विजय सिंह टीम के उप कप्तान थे। कप्तान किशन लाल और बाबू की जबरदस्त जोडी थी। राइट आउट व राइट इन का ऐसा जोर भारतीय हॉकी में दुबारा दिखाई नहीं दिया। इन दोनों की समझ चतुरता और कौशल ने लंदन के ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलाया। दोनों में गेंद की अनकही समझ थी। बाबू को मालूम होता था कि अब किशन लाल कहा गेंद देनेवाले है, और किशन लाल जानते थे कि बाबू से गेंद प्राप्त करने के लिए मुझे किस स्थान पर होना चाहिए।सौरव गांगुली की जीवनी – सौरव गांगुली क्रिकेट कैरियर व बायोग्राफी इन हिन्दीलंदन ओलंपिक में स्वर्ण पदक प्राप्त करने के चार साल बाद अगले ओलंपिक में टीम के नेतृत्व का दायित्व उन पर था। क्योंकि वे विभिन्न देशों का दौरा कर चुके बाबू के लिए यह उत्तरदायित्व कोई बड़ी बात नहीं थी। वे पहले भी ओलंपिक में खेल चुके थे। बहरहाल हेलसिंकी में पहले आस्ट्रिया और ग्रेट ब्रिटेन पर विजय प्राप्त करके भारतीय टीम का फाइनल में प्रवेश हुआ। दूसरी थी नीदरलैंड। नीदरलैंड ने पूर्व चैंपियन भारतीय टीम के विरूद्ध शुरुआत आक्रामक ढंग से की। परंतु बाद मे भारतीय टीम 3-0 से आगे हो गई। फिर ब्रेक के बाद मे खेल शुरू होने पर भारतीय कप्तान ने एक गोल करके अपनी टीम की बढ़त अधिक कर दी। इस दौरान नीदरलैंड की टीम एक गोल करने में सफल हुई। स्कोर 4-1 होने पर विपक्षी उत्साह से भरे थे। किंतु भारतीय टीम ने पांचवा गोल करके इसे ठंडा कर दिया। इस तरह नीदरलैंड के विरुद्ध एक गोल और करके भारत ने 6-1 से जीत हासिल की। कुवंर दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में भारत जीतने में सफल हुआ। बाबू टीम के शानदार प्रदर्शन से विश्व के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी व इससे पहले एशिया में भी बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी की छवि बना चुके थे। इसी कारण 1952 में बाबू को हेलम्स ट्राफी से सम्मानित किया गया।कुवंर दिग्विजय सिंह बाबूवह पहले भारतीय खिलाड़ी थे जिसको अमरीका के हेलम्स संस्थान ने यह सम्मान प्रदान किया। भारतीय हॉकी मे दिग्विजय सिंह का नाम इसलिए भी सम्मान से लिया जाता है कि उन पर किसी प्रकार के प्रलोभन का प्रभाव नहीं हुआ। क्योंकि अनेक देशों ने दिग्विजय सिंह के सामने प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव रखा किंतु उनकी स्वीकृति नहीं मिली। बाबू एक दुर्लभ उदाहरण थे। यदि खेल की बारीकियों का ज्ञान होने के अलावा दूरदर्शिता, अग्रिम पंक्ति के कुशल खिलाड़ी कप्तान और प्रशिक्षक आदि सब गुणों का समन्वय एक ही व्यक्ति में देखने को मिलता है। तो वह व्यक्ति है कुवंर दिग्विजय सिंह बाबू।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं हेलसिंकी ओलंपिक के बाद लगभग सात आठ साल तक वे बतौर खिलाड़ी जीवन में सक्रिय रहे। उसके बाद उन्होंने प्रशिक्षण का कार्य भी किया। इसके अतिरिक्त वे शिकार के भी शौकीन थे। खिलाड़ी जीवन जो हेलसिंकी ओलंपिक के बाद सात आठ वर्ष सक्रिय रहा बाबू ने प्रशिक्षण कार्य किया। तभी तो उत्तर प्रदेश खेल परिषद ने 1967 में अपने भूतपूर्व हॉकी खिलाड़ी को निर्देशक बनाया। 1971-72 में अखिल भारतीय खेल परिषद के सदस्य बन गए। इसके बाद बाबू को खेल परिषद के पद पर नियुक्त किया गया। सोसायटी ऑफ नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर फिजिकल एजूकेशन एंड स्पोर्ट्स के अंत तक सदस्य रहे। 1958 में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। कुवंर दिग्विजय सिंह का 27 मार्च 1978 में 55 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। ऐसी गजब की सूझबूझ रखने वाला खिलाड़ी असम्भव नहीं तो मुश्किल अवश्य है।उपब्धियां• हेलम्स ट्राफी से सम्मानित होने वाले पहले खिलाड़ी है कुवंर दिग्विजय सिंह बाबू।• दिग्विजय सिंह के नाम पर लखनऊ में एक स्टेडियम की स्थापना भी हुई जिसका नाम बाबू के. डी. सिंह स्टेडियम है। जो आज लखनऊ का प्रसिद्ध स्टेडियम है।• 1958 में दिग्विजय सिंह को पदमश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान खिलाड़ी खेल जगतजीवनी