अयोध्या का इतिहास – अयोध्या के दर्शनीय स्थल और महत्व Naeem Ahmad, June 2, 2018February 17, 2023 अयोध्या भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है। कुछ सालो से यह शहर भारत के सबसे चर्चित शहरो में से भी एक रहा है। जिसका कारण यहा राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद है। और यह विवाद अयोध्या का इतिहास को कलंकित कर रहा। आपने इस लेख में हम अयोध्या का इतिहास, अयोध्या हिस्ट्री इन हिंदी में जानेगें।अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत का इतिहास एक आकर्षक है। प्राचीन इतिहास के अनुसार, अयोध्या सबसे पवित्र शहरों में से एक था जहां हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम और जैन धर्म के धार्मिक धर्म एक साथ पवित्र स्थान का निर्माण करने के लिए एकजुट थे।अयोध्या का इतिहास एक चेकर्ड है। अथर्ववेद में, इस जगह को एक ऐसे शहर के रूप में वर्णित किया गया था जो देवताओं द्वारा बनाया गया था और स्वर्ग के रूप में समृद्ध था। अयोध्या का इतिहास प्राचीन कोसाला के शक्तिशाली साम्राज्य में अयोध्या की राजधानी थी। यह शहर 600 ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र भी था। इतिहासकारों ने इस स्थान की पहचान 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान एक प्रमुख बौद्ध केंद्र साकेत, (यह व्यापक रूप से धारणा है कि बुद्ध ने कई अवसरों पर अयोध्या का दौरा किया) जो यह 5 वीं शताब्दी ईस्वी तक बना रहा। वास्तव में, चीनी भिक्षु फा-हियान ने यहां देखा कि कई बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है।हमारे यह लेख भी जरूर पढे:–लखनऊ के दर्शनीय स्थलगोरखपुर के दर्शनीय स्थलकानपुर के पर्यटन स्थल जैन समुदाय के लिए अयोध्या का ऐतिहासिक महत्व भी है। यहा दो महत्वपूर्ण जैन तीर्थंकरों का जन्म स्थान है जो सदियों की शुरुआत में पैदा हुए थे। जैन ग्रंथ भी इस शहर के जैन धर्म के संस्थापक महावीर की यात्रा के लिए गवाही देते हैं। 7 वीं शताब्दी ईस्वी में, चीनी भिक्षु जुआन झांग (ह्यूएन त्संग) ने अयोध्या में कई हिंदू मंदिरों को खोजते हुए रिकॉर्ड किया। महाकाव्य रामायण में, अयोध्या शहर भगवान श्री राम के जन्मस्थान के रूप में उद्धृत किया गया है, एक हिंदू देवता जिसे भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में पूजा की गई थी। 1400 के दशक में अयोध्या एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन गया जब रामानंद, हिंदू रहस्यवादी ने राम के भक्ति संप्रदाय की स्थापना की। 16 वीं शताब्दी में अयोध्या मुगल साम्राज्य के शासन में आने के साथ सत्ता में बदलाव आया। 1856 में ब्रिटिश शासकों द्वारा अयोध्या को कब्जा कर लिया गया था। 1857 और 185 9 के बीच, यह स्थान उन मुख्य केंद्रों में से एक था जहां भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध की चमक शुरू हुई थी। बाद में इन स्पार्कों ने कलकत्ता में शुरू हुई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरोध में भारतीय सैनिकों के राष्ट्रव्यापी विद्रोह का नेतृत्व किया अयोध्या का इतिहास का एक और पहलू धार्मिक दृष्टि से अयोध्या का प्राचीन इतिहास बताता है कि वर्तमान अयोध्या महाराज विक्रमादित्य का बसाया हुआ है। महाराज विक्रमादित्य देशाटन करते हुए संयोगवश यहा सरयू नदी के किनारे पहुंचे थे। यही पर उनकी सेना ने शिविर डाला था। उस समय यहा वन था।कोई प्राचीन तीर्थ चिन्ह यहा नही था। महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई पडा। उन्होने खोज आरंभ की और पास के योगी संतो की कृपा से उन्हे ज्ञात हुआ कि यह श्री अवध भूमि है। उन संतो के निर्देश से महाराज ने यहां भगवन लीलास्थली को जानकर यहां मंदिर, सरोवर, कूप इत्यादि बनवाए।मथुरा के समान अयोध्या भी आक्रमणकारियो का बार बार शिकार होती रही है। बार बार आततायियों ने इस पावन नगरी को दवस्त किया। प्राचीनता के नाम पर अब अयोध्या में केवल भूमि तथा सरयू नदी ही बची है। यह भी कहा जाता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जी के साथ अयोध्या के कीट पतंगे तक उनके दिव्य धाम में चले गए। इससे त्रेता युग में ही अयोध्या उजड गई थी। माना जाता है कि श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे फिर से बसाया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार:– यह पवित्र नगरी पवित्र सरयू नदी के तट पर बसी हुई है। और सर्वप्रथम इसे मनु ने बसाया था। अयोध्या दर्शन धार्मिक दृष्टि से – अयोध्या तीर्थ यात्राभारत की प्राचीन सांस्कृतिकसप्तपुरियो में अयोध्या का प्रथम स्थान है। भगवान श्रीराम के पूर्ववर्ती राजाओ की यह राजधानी रही है। इश्वाकु सेश्री रघुनाथ जी तक सभी चक्रवर्ती नरूशो ने अयोध्या के सिंहासन को भूषित किया है। श्रीरामजी की अवताय भूमि होने के बाद अयोध्या को साकेत कहा जाने लगा। अयोध्या का महात्मयवाल्मीकि रामायण के अनुसार यह पवित्र नगरी सरयू नदी के तट पर बसी हुई है। सर्वप्रथम मनु ने इसे बसाया था।स्कंद पुराण के अनुसार अयोध्या नगरी सुदर्शन चक्र पर बसी है।“भूतशुद्धितत्व” के अनुुसार अयोध्या नगरी श्री राम चंद्र के धनुषाग्र पर स्थित है।स्कंद पुराण में अयोध्या का अर्थ का निर्वचन करते हुए कहता है कि “अ” कार ब्रह्मा है। “य” कार विष्णु है। तथा “ध” कार रूद्र का स्वरूप है। इसलिए अयोध्या ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर इन तीनो का समन्वित रूप है। समस्त उप पातको के साथ ब्रह्मात्यादि महापातक भी इससे युद्ध नही कर सकते इसलिए इसे अयोध्या कहते है।पहले ब्रह्माजी ने अयोध्या की यात्रा की थी। और अपने नाम से एक कुंड बनाया था। जो ब्रह्माकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। एक कुंड सीताजी द्वारा बनाया गया था, जिसका नाम सीता कुंड है। इस कुंड को भगवान राम ने वर देकर समस्त कामपूरक बनाया, इसमे स्नान करने से मनुष्य सब पापो से मुक्त हो जाता है।ब्रह्माकुंड से पूर्वोत्तर में ऋणमोचन तीर्थ (सरयू) है। यहा लोमेशजी ने विधिपूर्वक स्नान किया था। सरयू में ही रूक्मणि तीर्थ है। जहा भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी, रूक्मणि जी ने स्नान किया था। कहा जाता है कि जो अयोध्या में स्नान, जप, तप, हवन, दान, दर्शन, ध्यान आदि करता है वह सब अक्षय होता है। अयोध्या दर्शनीय स्थलअयोध्या के घाटअयोध्या में सरयू नदी किनारे कई सुंदर व पक्के घाट बने है। यदि पश्चिम से पूर्व की ओर चले तो यह घाट इस क्रम से मिलेगें 1. ऋणमोचन घाट 2. सहस्त्रधारा घाट 3. लक्ष्मण घाट 4. स्वर्गद्वार 5. गंगामहल 6- शिवाला घाट 7. जटाई घाट 8- अहिल्याबाई घाट 9. धौरहरा घाट 10. रूपकला घाट 11. नया घाट 12. जानकी घाट 13. राम घाट अयोध्या के मंदिर – अयोध्या के प्रमुख दर्शनीय स्थल लक्ष्मण घाटइस घाट पर लक्ष्मण जी का एक मंदिर है। इसमे पांच फुट ऊंची एक लक्ष्मण जी की मूर्ति है। यह मूर्ति सामने वाले कुंड में पायी गई थी। कहते है कि यही से लक्ष्मण जी परम धाम पधारे थे। स्वर्गद्वार घाटइस घाट के निकट श्री नागेश्वरनाथ महादेव जी का मंदिर है। कहा जाता है कि बाबर ने जब जन्म स्थान के मंदिर को तोडा था। तब पुजारियो ने वहा से यह मूर्ति उठाकर यहा स्थापित कर दी। इसी घाट पर यात्री पिंडदान करते है। अहिल्याबाई घाटइस घाट के थोडी दूर त्रेतानाथजी का मंदिर है। कहते है कि श्रीराम ने यहा यज्ञ किया था। इसमे राम सीता की मूर्ति है। हनुमानगढीयह स्थान सरयू तट से लगभग एक मील दूर नगर में स्थित है। यह एक ऊंचे टिले पर चार कोट का छोटा सा दुर्ग है। 60 सीढियां चढकर हनुमानजी के मंदिर में जाया जाता है। मंदिर के चारो ओरर मकान है जिसमे साधु संत रहते है। हनुमानगढी के दक्षिण में सुग्रीव टिला और अंगद टिला है। कनक भवनअयोध्या का मुख्य मंदिर यही है। यह मंदिर ओरछा नरेश का बनवाया हुआ है। यह सबसे विशाल एवं भव्य है। इसे श्रीराम का अत:पुर या सीताजी का महल कहते है। इसमे मुख्य मूर्तिया राम सीता की है। सिंहासन पर जो बडी मूर्तिया है। उनके आगे सीता- राम की छोटी मूर्तिया है। जिन्हे प्राचीन बताया जाता है। यह मंदिर अयोध्या का इतिहास का मुख्य मंदिर है। दर्शनेश्वरहनुमानगढी से थोडी दूरी पर अयोध्या नरेश का महल है। इस महल की वाटिका में दर्शनेवर महादेव का सुंदर मंदिर है। जन्म स्थानकनक भवन से आगे श्रीराम जन्मभूमि है। अयोध्या का यही वो विवादित स्थान है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां के प्राचीन मंदिर को तुडवाकर बाबर ने बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। परंतु अब यहा फिर से श्रीराम की मूर्ति आसीन है। उस प्राचीन मंदिर के घेरे में जन्मभूमि का एक छोटा मंदिर और भी है। जन्म स्थान के पास कई मंदिर है। गीता रसोई, चौबीस अवतार, कोप भवन, रत्नसिहासन, आनंदभवन, रंगमहल इत्यादि। तुलसी चौराराजमहल के दक्षिण में खुले मैदान मे तुलसी चौरा है। यह वह स्थान है जहा गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरित्र मानस की रचना की थी। मणि पर्वततुलसी चौरा से लगभग एक मील दूर अयोध्या रेलवे स्टेशन के पास वन में एक टीला है। टीले के ऊपर मंदिर है। यही पर अशोक के 200 फुट ऊंचे एक स्तूप का अवशेष है। दातुन कुंडयह स्थान मणिपर्वत के निकट है। कहा जाता है कि यहा भगवान श्रीराम दातुन किया करते थे। कुछ लोग यह भी कहते है कि जब गौतम बुद्ध अयोध्या में रहते थे, तब एक दिन यहां उन्होने अपनी दातुन गाड दी थी। बाद में वह सात फुट ऊंचा वृक्ष हो गई। वह वृक्ष अब नही है। परंतु उसका स्मारक अब भी है। अयोध्या में बहुत अधिक मंदिर है। हम यहा केवल प्राचीन स्थानो का उल्लेख किया है। नए मंदिर तथा संतो के स्थान तो यहा बहुत अधिक है। अयोध्या के आस पास के तीर्थ – अयोध्या के आस पास के मंदिर – अयोध्या का इतिहास दशरथ तीर्थयह सरयू तट पर स्थित है। रामघाट से इसकी दूरी लगभग 8 मील है। यहा महाराजा दशरथ का अंतिम संस्कार हुआ था। छपैयायह एक गांव है। जो सरयू नदी के पार है। अयोध्या से इसकी दूरी लगभग 6 मील है। यह स्वामी सहजानंदजी की जन्मभूमि है। नंदिग्रामयह स्थान फैजाबाद से लगभग 10 मील तथा अयोध्या से 16 मील दूर है। यहा राम वनवास के समय भरतजी ने 14 वर्ष तपस्या की थी। यहा पर भरतकुंड सरोवर और भरत जी का मंदिर है। सोनखरयहा महाराजा रघु का कोषागार था। कुबेर ने यही सोने की वर्षा की थी। सूर्य कुंडरामघाट से इस स्थान की दूरी लगभग पांच मील है। यहा के लिए पक्का सडक मार्ग है। यहा एक बडा सरोवर है। जिसके चारो ओर घाट बने हुए है। पश्चिम किनारे पर सूर्य नारायण का मंदिर है। गुप्तारघाटयह स्थान अयोध्या से पश्चिम की ओर सरयू किनारे लगभग 9 मील की दूरी पर है। यहा सरयू स्नान का बहुत बडा महत्व माना जाता है। घाट के पास गुप्तहरि का मंदिर है। जनौरामहाराजा जनक जब अयोध्या पधारते थे तो उनका शिविर यही पर रहता था। अयोध्या से सात मील दूर फैजाबाद सुल्तानपुर सडक पर यह स्थान है। यहा गिरिजाकुंड नामक एक सरोवर तथा एक शिव मंदिर है। अयोध्या के मेलेअयोध्या का इतिहास और अयोध्या दर्शन में यहा लगने वाले मेलो का बहुत बडा योगदान है। अयोध्या मे श्रीराम नवमी पर सबसे बडा मेला होता है। दूसरा मेला 8-9 तक श्रावण शुकलपक्ष में झूले का होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर भी सरयू स्नान करने यात्री यहा आते है। अयोध्या की परिक्रमाअयोध्या की दो परिक्रमाए है। जिनका अयोध्या का इतिहास, अयोध्या तीर्थ यात्रा में बडा महत्व है। बडी परिक्रमा स्वर्गद्वार से आरंम्भ होती है। वहा से सरयू किनारे सात मील जाकर और फिर मुडकर शाहनवाजपुर, मुकारस नगर होते हुएदर्शन नगर में सूर्यकुंड पर पहला विश्राम किया जाता है। वहा से पश्चिम कोसाह, मिर्जापुर, बिकानेर ग्रामो में से होते हुए। जनौरा पहुंचने पर दूसरा विश्राम किया जाता है। जनौरा से खोजमपुर, निर्मलीकुंड, गुप्तारघाट होते हुए स्वर्गद्वार पहुचने पर परिक्रमा पूरी हो जाती है। छोटी परिक्रमा केवल 6 मील की है। यह रामघाट से प्रारंम्भ होती है। इसके बाद बाबा रघुनाथदास की गद्दी, सीता कुंड, अग्निकुंड, विद्या कुंड, मणिपर्वत, कुबेर पर्वत, सुग्रीव पर्वत, लक्ष्मण घाट, स्वर्गद्वार होते हुए रामघाट आकर पूर्ण होती है। अयोध्या का इतिहास, अयोध्या हिस्ट्री इन हिंदी आदि शीर्षको पर आधारित हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताए। यह जानकारी आप अपने दोस्तो के साथ सैशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है।Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a 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